Book Title: Uvavai Suttam
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Jivan Karyalay
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वाई सूतं
तो वि जाव एगचाओ पडिविरया जावज्जीवाए एगच्चा अपडिविरया ।
तं जहा :- समणोवासगा भवति, अभिगयजीवाजीवा उवलद्धपुरणवा आसवसंवरनिज्ज रकिरिया हि रणबंध मोक्खकुसला असहेजा ओदेवासुरणागजक्खर क्खसकिन्नर किं पूरी सगरुल गंधव्वमहोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ
इक्कमणिजा निग्गंथे पावयणे णिस्संकिया णिक्कंखिया निव्वितिमिच्छा लट्ठा गहिया पुच्छियट्ठा अभिगयठ्ठा विणिच्छ्रियठ्ठा अट्ठिमिंज पेमाणुरागरत्ता "माउसो ! निग्गंथे पावयणे अड्डे अयं परमट्ठे सेसे डे" ऊसियफलिहा अवगुयदुवारा चियत्तंतेउर पर घरदार पवेमा चउद्दसमुद्दिट्ट पुरण मासिणीसु पडिपुराणं पोसहं सम्मं अणुपालेमाणा समणे निग्गंथे फासुएस णिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमें वत्थपडिग्गह कंबलपाय पुंछणेणं सहभेसजेणं पडिहारएण य पीढफलगसेज्जासंधारएणं पडिला भेमाणा विहति २त्ता भन्तं पच्चक्खति ते बहु भत्ताइं अणसणाए छेदेति छेदित्ता आलोइयपडिक्कंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं अच्चु कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवति, तेहिं

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