Book Title: Uvavai Suttam
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Jivan Karyalay

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Page 77
________________ उववाई सूत्तं ७३ कद्दमोदए, सेऽवि य बहुप्पसरणे णो चेव णं अबहुप्पसरणे, सेवि य परिपूए णो चेव णं अपरिपूर सेवि य णं दिएणे णो चेव णं अदिएणे, सेवि य विवित्तए णो चेव णं हत्थपायचरुचमसपक्खालपठाए सिणाइत्तए वा । तेसि णं परिव्बायगाणं कप्पइ मागहए श्राद्धाढए जलस्स पडिग्गाहित्तए, सेऽवि य वहमाणे णो चव णं अवहमाणे जाव णो चेवणं अदिएणे, सेवि य हत्थपायचरुचमसपक्खालणठ्ठयाए णो चेव णं पिबित्तए सिणाइत्तए वा। ते णं परिव्वायगा एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं परियायं पाउणंति, २ त्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तहिं तेसिं गई तहिं तेसिं ठिई दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता, सेसं तं चेव ॥१२॥ (सूत्र ६) तेणं कालेणं तेणं समएणं अम्मडस्स परिवायगस्स सत्त अंतेवासिसयाइं गिम्हकालसमयंसि जेट्टामूलमासंमि गंगाए महानईए उभोकूलेणं कंपिल्लपुरानो गयरात्रो पुरिमतालं णयरं संपठिया विहाराए।

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