Book Title: Uvavai Suttam
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Jivan Karyalay

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Page 50
________________ ४६ वाई सूतं णयरिं सन्भितर जाव गंधवट्टिभूयं कयं पासह, पासिता हठ्ठठ्ठचित्तमाणंदिए [ दिए ] पीअमणे जाव हियए जेणेव कूणिए राया भंभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ २ त्ता करयल जाव एवं वयासी-कप्पिए णं देवाप्पियाणं श्रभिसेक्के हत्थिरयणे हयगय जाव पवरजोहक लिया य चाउरंगिणी सेवा साहिया सुभद्दापमुहाणं य देवीणं बाहिरियाए उवठ्ठाणसालाए पाडिएकपाडि एक्काई जन्त्ताभिमुहा इं जुताई जाणाई उट्ठावियाई चंपाणयरी सग्भितरबाहिरिया श्रमित्त जाव गंधवट्टिभूया कया, तं णिज्जंतुणं देवाप्पिया ! समणं भगवं महावीरं अभिवंदया || ( सू० ३१ ) तए णं से कूणिए राया भंभसारपुते बलवा यस्स अंतिए एयमठ्ठे सोच्चा णिसम्म हठ्ठतु जाव हियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ २ ता अट्टणसालं अणुपविसद्द २ ता अणेवगवायामजोग्गणवामद्दणमल्लजुद्धकरणेहिं संते परिस्ते सयपागसहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाइएहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयपिज्जेहिं बिंहणिज्जेहिं सव्विंदियगाय परहायणिज्जेहिं अभिगेहिं अभिगिए समाणे तेल्लचम्मंसि पडिपुराण

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