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________________ १४० ] स्वार्थसूत्र जैनाऽऽगमसमन्वय : छाया अनन्ताः समयाः । भाषा टीका - कालद्रव्य में अनन्त समय होते हैं। द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः । व्वस्सिया गुणा । छाया--- k, ४१. उत्तराभ्ययन अध्ययन २६, गाथा ६. छाया - द्रव्याश्रयाः गुणाः । भाषा टीका – गुण द्रव्य के आश्रय होते हैं [ और स्वयं निर्गुण होते हैं ] । तद्भावः परिणामः । ५, ४२. दुविहे परिणामे पण्णत्ते, तं जहा- जोवपरिणामे य अजोवपरिणामे य । द्विविधः परिणामः प्रज्ञप्तः, परिणामश्च । प्रज्ञापना परिणाम पद १३ सू० १८१. तद्यथा - जीवपरिणामश्च अजीव - परिणामो र्थान्तरगमनं न च सर्वथा व्यवस्थानम् । न च सर्वथा विनाशः परिणामस्तद्विदामिष्टः ॥ इति वृत्तिकार. भाषा टीका - परिणाम दो प्रकार का होता है - जीव परिणाम और अजीब परिणाम | वृत्तिकार ने कहा है कि एक अर्थ से दूसरे अर्थ में प्राप्त होने को परिणाम कहते हैं । सब प्रकार से दूसरा रूप भी नहीं हो जाता और न सब प्रकार से प्रथम रूप नष्ट ही होता है, उसे परिणाम कहते हैं । संगति – इन सूत्रों का आगमवाक्यों के साथ साम्य स्पष्ट है । इति श्री जैन मुनि - उपाध्याय - श्रीमदात्माराम महाराज - संगृहीते तस्वार्थ सूत्र जैनाऽऽगमसमन्वये * पञ्चमोऽध्यायः समाप्तः ॥ ५ ॥ :0: ---
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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