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तैत्तिरीयोपनिषद्
[बल्ली
धीनत्वारनामेन बदिष्यामि । तुम्हारे ही अधीन है। वाक और सत्यमिति स एक वाकायाभ्यां शरीरले सम्पादन किया जानेवाला
वह अर्थ ही सत्य कहलाता है, यह संपावसानः, शोपि त्वदधीन
भी तुम्हारे ही अधीन सम्पादन किया एव संपाद्य इति त्वामेव सत्यं जाता है। अतः तुम्हींको में सत्य वदिष्यामि ।
कहूँगा। तत्सर्वात्मकं वाय्वाख्यं ब्रह्म , वह वायुरातका सर्वात्मक ब्राम मयंवं स्तुतं सन्मां विद्यार्थिनम- मेद्वारा इन प्रकार स्तुति किये
जानेपर मुगा विद्यार्थीको विद्यासे वतु विद्यासंयोजनेन । तदेव मुक्त करके रक्षा करे । बाही ब्राम ब्रह्म वक्तारमाचार्य वक्तृत्व- । यता आचार्यको चान्वसामध्यसे सामर्थ्यसंयोजनेनावतु । अबत युक्त करके उनकी रक्षा करे । मेरी
रक्षा करे और वायी रक्षा करे-दन मामवतु वक्तारमिति पुनर्वचन-!
प्रकार दो बार कहना आदरके लिये मादरार्थम् । ॐ शान्तिः शान्तिः है। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः'शान्तिरिति निर्वचनमाध्यात्मि-: ऐसा तीन बार काहना विद्याप्राप्तिक काधिभौतिकाधिदैविकानांविद्या
. आध्यात्मिक, आधिभौतिया और
ur आधिदैविक विनोंकी शान्तिको प्राप्त्युपसर्गाणां प्रशमार्थम् ॥१॥ लिये है ॥ १ ॥
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इति शीक्षावल्ल्यां प्रथमोऽनुवाकः ॥१॥