Book Title: Taittiriyo Pnishad
Author(s): Geeta Press
Publisher: Geeta Press

View full book text
Previous | Next

Page 236
________________ अनु०१०] शाङ्करभाष्यार्थ २२१ नस्य माहात्म्यमुच्यते । यथा है । अब अन्नदानका माहात्म्य कहा जाता है जो पुरुष जिस प्रकार यत्कालं प्रयच्छत्यन्नं तथा और जिस समय अन्न-दान करता तत्कालमेव प्रत्युपनमते । कथ- है उसे उसी प्रकार और उसी समय उसकी प्राप्ति होती है। ऐसा किस मिति तदेतदाह प्रकार होता है ? सो बतलाते हैंएतद्वा अन्नं मुखतो मुख्ये | जो पुरुप मुखतः-मुख्य-प्रथम वृत्तिभेदेनान- प्रथमे वयसि मु-अवस्थाम अथवा मुख्य वृत्तिसे यानी दानस्य फलभेदः ख्यया वा वृत्त्या सत्कारपूर्वक राद्ध अर्थात् सिद्ध पक) अन्नको अपने यहाँ आये पूजापुरःसरमभ्यागतायान्नार्थिने हुए अन्नार्थी अतिथिको देता हैराद्धं संसिद्ध प्रयच्छतीति वाक्य- यहाँ प्रयच्छति ( देता है) यह शेषः । तस्य किं फलं स्यादि क्रियापद वाक्यशेष (अनुक्त अंश) है-उसे क्या फल मिलता है, सो त्युच्यते-मुखतः पूर्व वयसि बतलाया जाता है-इस अन्नदाताको मुख्यया वा वृत्त्यास्मा अन्नादा- मुखतः-प्रथम अवस्थामें अथवा यानं राध्यते यथादत्तमुपतिष्ठत | मुख्य वृत्तिसे अन्न प्राप्त होता है। | अर्थात् जिस प्रकार दिया जाता है इत्यर्थः । एवं मध्यतो मध्यमे | ॥ भव्य उसी प्रकार प्राप्त होता है। इसी वयसि मध्यमेन चोपचारेण । प्रकार मध्यतः-मध्यम आयुमें अथवा . तथाऽन्ततोऽन्ते वयसि जघन्येन मध्यम वृत्तिसे तथा अन्ततः-अन्तिम चोपचारेण परिभवेन तथैवास्मै आयुमें अथवा निकृष्ट वृत्तिसे यानी तिरस्कारपूर्वक देनेसे इसे उसी राध्यते संसिध्यत्यन्नम् ॥१॥ प्रकार अन्नकी प्राप्ति होती है ॥१॥ य एवं वेद य एवमन्नस्य - जो इस प्रकार जानता है-जो यथोक्तं माहात्म्यं वेद तदानस्य | इस प्रकार अन्नका पूर्वोक्त माहात्म्य च फलम् , तस्य यथोक्तं फल- और उसके दानका फल जानता है मुपनमते। | उसे पूर्वोक्त फलकी प्राप्ति होती है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255