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अनु०१०]
शाङ्करभाष्यार्थ
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नस्य माहात्म्यमुच्यते । यथा है । अब अन्नदानका माहात्म्य कहा
जाता है जो पुरुष जिस प्रकार यत्कालं प्रयच्छत्यन्नं तथा
और जिस समय अन्न-दान करता तत्कालमेव प्रत्युपनमते । कथ- है उसे उसी प्रकार और उसी समय
उसकी प्राप्ति होती है। ऐसा किस मिति तदेतदाह
प्रकार होता है ? सो बतलाते हैंएतद्वा अन्नं मुखतो मुख्ये | जो पुरुप मुखतः-मुख्य-प्रथम वृत्तिभेदेनान- प्रथमे वयसि मु-अवस्थाम अथवा मुख्य वृत्तिसे यानी दानस्य फलभेदः ख्यया वा वृत्त्या
सत्कारपूर्वक राद्ध अर्थात् सिद्ध
पक) अन्नको अपने यहाँ आये पूजापुरःसरमभ्यागतायान्नार्थिने हुए अन्नार्थी अतिथिको देता हैराद्धं संसिद्ध प्रयच्छतीति वाक्य- यहाँ प्रयच्छति ( देता है) यह शेषः । तस्य किं फलं स्यादि
क्रियापद वाक्यशेष (अनुक्त अंश)
है-उसे क्या फल मिलता है, सो त्युच्यते-मुखतः पूर्व वयसि
बतलाया जाता है-इस अन्नदाताको मुख्यया वा वृत्त्यास्मा अन्नादा- मुखतः-प्रथम अवस्थामें अथवा यानं राध्यते यथादत्तमुपतिष्ठत | मुख्य वृत्तिसे अन्न प्राप्त होता है।
| अर्थात् जिस प्रकार दिया जाता है इत्यर्थः । एवं मध्यतो मध्यमे |
॥ भव्य उसी प्रकार प्राप्त होता है। इसी वयसि मध्यमेन चोपचारेण । प्रकार मध्यतः-मध्यम आयुमें अथवा . तथाऽन्ततोऽन्ते वयसि जघन्येन मध्यम वृत्तिसे तथा अन्ततः-अन्तिम चोपचारेण परिभवेन तथैवास्मै आयुमें अथवा निकृष्ट वृत्तिसे यानी
तिरस्कारपूर्वक देनेसे इसे उसी राध्यते संसिध्यत्यन्नम् ॥१॥
प्रकार अन्नकी प्राप्ति होती है ॥१॥ य एवं वेद य एवमन्नस्य - जो इस प्रकार जानता है-जो यथोक्तं माहात्म्यं वेद तदानस्य | इस प्रकार अन्नका पूर्वोक्त माहात्म्य च फलम् , तस्य यथोक्तं फल- और उसके दानका फल जानता है मुपनमते।
| उसे पूर्वोक्त फलकी प्राप्ति होती है।