Book Title: Taittiriyo Pnishad
Author(s): Geeta Press
Publisher: Geeta Press

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Page 247
________________ રરર तैत्तिरीयोपनिषद् [घल्ली ३ मानन्दमजममृतमभयमहतं फल- अजन्ना, अमृत, अभय, अद्वैत एवं सत्य, ज्ञान और अनन्त ब्रह्मको भृतमापन्न इमल्होकान्भूरादीन- प्राप्त हो इन भूः आदि लोकॉम ..: सद्धार करता हुआ-इस प्रकार इन दुसंचरनिति व्यवहितन संबन्धः । व्यवधानयुक्त पदोंसे इन वाक्यका कथमनुसंचरन् ? कामानी सम्बन्ध है-किस प्रकार सवार करता हुआ ? कानान्नी-जिसको कामतोऽन्नमस्येति कामान्नी । इन्छासे ही अन्न प्राप्त हो जाय उसे कामानी कहते हैं, तथा जिसे इच्छासे तथा कामतो रूपाण्यस्येति । ही [इष्ट] रूपोंकी प्राप्ति हो कामरूपी । अनुरांचरन्सर्वात्मने-जाय ऐसा कामरूपी होकर सञ्चार करता हुआ अर्थात् सर्वात्मभावले माँल्लोकानात्मत्वेनानुभवन्- इन लोकोंको अपने आत्मारूपसे किम् ? एतत्साम गायनास्ते । | अनुभव करता हुआ क्या करता है ? इस सामका गान करता रहता है । समत्वाद्ब्रह्मैव साम सर्वा- समरूप होनेके कारण ब्रह्म ही ब्रह्मविदः नाम- नन्यरूपं गायश साम है। उस सबसे अभिन्नरूप गानाभिप्रायः व्दयन्नात्मकत्वं प्र- अर्थात लोकपर अनुग्रह करनेके लिये सामका गान-उच्चारण करता हुआ ख्यापर्यंल्लोकानुग्रहार्थ तद्विज्ञान आत्माकी एकताको प्रकट करता | हुआ और उसकी उपासनाके फल फलं चातीव कृतार्थत्वं गायन्ना- अत्यन्त कृतार्थत्वका गान करता हुआ स्थित रहता है । किस प्रकार स्ते तिष्ठति । कथम् ? हा ३ वु! । कथम् ' हा २ वु गान करता है-हा ३ वु ! हा हा३वु! हाश्वु! अहो इत्येतसिन- ३ वु! हा ३ वु ! ये तीन शब्द 'अहो !' इस अर्थमें अत्यन्त विस्मय र्थेऽत्यन्तविसयख्यापनार्थम् ॥५॥ प्रकट करनेके लिये हैं ॥ ५॥

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