Book Title: Taittiriyo Pnishad
Author(s): Geeta Press
Publisher: Geeta Press

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Page 174
________________ अनु० ६ ] शाङ्करभाष्यार्थ मूर्तस्य व्याकृतविषयाण्येवैतानि । अमूर्तके विशेषण व्याकृतविषयक ही हैं। १५९ चेतनमविज्ञानं विज्ञान यानी चेतन, अविज्ञान - विज्ञानं तद्रहितमचेतनं पापाणादि सत्यं | उससे रहित अचेतन पाषाणादि और सत्य - व्यवहारसम्बन्धी सत्य, च व्यवहारविषयमधिकारान्न | क्योंकि यहाँ व्यवहारका ही प्रसंग परमार्थसत्यम् । एकमेव हि है, परमार्थ सत्य नहीं; परमार्थ सत्य तो एकमात्र ब्रह्म ही है; यहाँ तो परमार्थसत्यं ब्रह्म । इह पुन - केवल व्यवहारविषयक आपेक्षिक र्व्यवहारविपय मापेक्षिकं सत्यम्, सत्य से ही तात्पर्य है, जैसे कि मृगतृष्णा आदि असत्यकी अपेक्षासे मृगतृष्णिकाद्यनृतापेक्षयोदकादि | जल आदिको सत्य कहा जाता है सत्यमुच्यते । अनृतं च तद्विप तथा अनृत-उस ( व्यावहारिक सत्य ) से विपरीत । सो फिर क्या ? ये सब वह सत्य - परमार्थ सत्य ही हो गया । वह परमार्थ सत्य है क्या ? वह ब्रह्म है, क्योंकि 'ब्रह्म सत्य, ज्ञान एवं अनन्त है' इस प्रकार उसीका प्रकरण है । 'रीतम् । किं पुनः १ एतत्सर्वमभवत्, परमार्थसत्यम् । किं सत्यं पुनस्तत् ? ब्रह्म, सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्मेति प्रकृतत्वात् । यस्मात्सच्यदादिकं मूर्तामूर्त- मूर्त-अमूर्त धर्मजात है वह सामान्यक्योंकि सत्-त्यत् आदि जो कुछ धर्मजातं यत्किचेदं सर्वमविशिष्टं रूपसे सारा ही विकार एकमात्र विकारजातमेकमेव सच्छन्दवाच्यं | 'सत्' शब्दवाच्य ब्रह्म ही हुआ हैक्योंकि उससे भिन्न नाम-रूप विकारका सर्वथा अभाव है - इसलिये ब्रह्मतस्मात्तद्ब्रह्मवादीलोग उस ब्रह्मको 'सत्य' ऐसा ब्रह्माभवत्तद्व्यतिरेकेणाभावान्ना कहकर पुकारते हैं । मरूपविकारस्य सत्यमित्याचक्षते ब्रह्मविदः । 'ब्रह्म है या नहीं' इस अनुप्रश्नका अस्ति नास्तीत्यनुप्रश्नः प्रकृतः तस्य प्रतिवचनविपय एतदुक्त- । यहाँ प्रसंग था । उसके उत्तर में यह

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