Book Title: Taittiriyo Pnishad
Author(s): Geeta Press
Publisher: Geeta Press

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Page 224
________________ चतुर्थ अनुशाक मन ही मस है-~-ऐसा जानकर और उसमें बलके लक्षण घटाकर भृगुका पुनः वरुणके पास जाना और उसके उपदेशसे पुनः तप करना मनो ब्रह्मेति व्यजानात् । मनसो ह्येव खल्विमानि भूतानि जायन्ते । मनसा जातानि जीवन्ति । मनः प्रयन्त्यभिसंविशन्तीति । तद्विज्ञाय पुनरेव वरुणं पितरमुपससार । अधीहि भगवो ब्रह्मेति । त होवाच । तपसा ब्रह्म विजिज्ञासस्व । तपो ब्रह्मेति । स तपोऽतप्यत । स तपस्तप्त्वा ॥१॥ मन ब्राह्म है---ऐसा जाना; क्योंकि निश्चय मनसे ही ये जीव उत्पन्न होते हैं, उत्पन्न होनेपर मनके द्वारा ही जीवित रहते हैं और अन्तमें प्रयाण करते हुए मनमें ही लीन हो जाते हैं। ऐसा जानकर वह फिर पिता वरुणके पास गया [ और बोला-] 'भगवन् ! मुझे ब्रह्मका उपदेश कीजिये ।' वरुणने उससे कहा-'तू तपसे ब्रह्मको जाननेकी इच्छा कर, तप ही ब्रह्म है।' तब उसने तप किया और उसने तप करके-॥१॥ इति भृगुवल्ल्यां चतुर्थोऽनुवाकः ॥ ४॥ २७-२८

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