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तैत्तिरीयोपनिषद्
[ चली ३
सर्वस्य प्रतिष्ठेत्युपासीत । प्रतिष्ठा | अतः वह सबकी प्रतिष्ठा ( आश्रय ) हैं - इस प्रकार उसकी उपासना करे । गुणोपासनात्प्रतिष्ठावान्भवति । प्रतिष्ठा गुणवान् ब्रह्मकी उपासना करनेसे उपासक प्रतिष्टावान् होता एवं पूर्वेष्वपि यद्यत्तदधीनं फलं । हैं । ऐसा ही पूर्व सब पर्यायाम समझना चाहिये । जो-जो उसके ही है।
तद्ब्रह्मैव
तदुपासनात्तद्वान्भवनीति | अधीन फल है यह
उसकी उपासना से पुरुष उसी फलसे द्रष्टव्यम् । श्रुत्यन्तराच - "तं युक्त होता है - ऐसा जानना चाहिये । यही बात "जिस-जिस प्रकार उसकी उपासना करता है वह (उपासक) वही हो जाता है" इस एक दूसरी श्रुतिसे प्रमाणित होती है ।
यथा यथोपासते तदेव भवति"
इति ।
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वह मह: है - इस प्रकार उसकी उपासना करें | महः अर्थात् महत्त्व गुणवाला है - ऐसे भावसे उसकी उपासना करे । इससे उपासक महान् हो जाता है । वह मन है - मननं मनः । मानवान्भवति | इस प्रकार उसकी उपासना करे ।
मननसमर्थो भवति ॥ ३ ॥ तन्नम इत्युपासीत । नमनं नमो नमन - गुणवत्तदुपासीत । नम्यन्ते प्रह्णीभवन्त्यमा उपासित्रे कामाः
मननका नाम मन है । इससे वह मानवान्-मनन में समर्थ हो जाता है ॥३॥ वह नमः है - इस प्रकार उसकी उपासना करे। नमनका नाम 'नमः' कर उपासना करे । इससे उस है अर्थात् उसे नमन - गुणवान् समझ
काम्यन्त इति भोग्या विषया | उपासकके प्रति सम्पूर्ण काम - जिनकी कामना की जाय वे भोग्य विषय नत अर्थात् विनम्र हो जाते हैं ।
इत्यर्थः ।
तन्मह इत्युपासीत । महो
महत्त्वगुणवत्तदुपासीत । महान् भवति । तन्मन इत्युपासीत ।