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शाङ्करभाष्यार्थ
अनु० ८ ]
चेति
न्यः । अत ओङ्कारोऽनुकृतिः ।
ह स्म वा इति प्रसिद्धार्थाव
taar: । प्रसिद्धमोङ्कारस्यानु
कृतित्वम् ।
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कृतमुक्तमोमित्यनुकरोत्य- | इस प्रकार किये हुए कथनको
सुनकर दूसरा पुरुष [ उसको स्वीकृत करते हुए ] 'ॐ' ऐसा अनुकरण करता है । इसलिये ओंकार अनुकृति है । 'ह' 'स्म' और '' — ये निपात प्रसिद्धिके सूचक हैं, क्योंकि ओंकारका अनुकृतित्व तो प्रसिद्ध ही है ।
अपि च 'ओ श्रावय' इति
पपूर्वकमाश्रावयन्ति । तथोमिति
सामानि गायन्ति सामगाः ।
इसके सिवा 'ओ श्रावय' इस प्रकार प्रेरणापूर्वक याज्ञिकलोग प्रतिश्रवण कराते हैं । तथा 'ॐ' ऐसा कहकर सामगान करनेवाले सामका गान करते हैं । शस्त्र शंसन करनेवाले भी 'ॐ शोम्' ऐसा कहकर शस्त्रोंका पाठ करते हैं । तथा अध्वर्युलोग प्रतिगरके प्रति 'ॐ' ऐसा उच्चारण करते हैं । 'ॐ' ऐसा कहकर ब्रह्मा अनुज्ञा देता है अर्थात् प्रेरणापूर्वक 'ब्रह्मा प्रसौत्यनुजानाति त्रैपपूर्व - | आश्रवण करता है; और 'ॐ'
ॐ शोमिति शस्त्राणि शंसन्ति शस्त्र
शंसितारोऽपि । तथोमित्यध्वर्युः
प्रतिगरं प्रतिगृणाति । ओमिति
कहकर वह अग्निहोत्रके लिये आज्ञा कमाश्रावयति । ओमित्यग्नि- देता है । अर्थात् यजमानके य
कहने पर कि 'मैं- हवन करता हूँ' वह 'ॐ' ऐसा कहकर उसे अनुज्ञा देता है ।
होत्रमनुजानाति । जुहोमीत्युक्त
ओमित्येवानुज्ञां प्रयच्छति ।