Book Title: Shadshitinama Chaturtha Karmgranth
Author(s): Rasiklal Shantilal Mehta
Publisher: Agamoddharak Pratishthan

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Page 11
________________ 10 सुरनरतिरिनिरयगई, इगबियतियचउपणिंदि छक्काया। भूजलजलणानिलवणतसा य मणवयणतणुजोगा॥ १०॥ वेय नरित्थि नपुंसा, कसाय-कोह-मय-माय-लोभत्ति । मइसुयवहिमणकेवल-विभंगमइसुअनाणसागारा ॥११॥ सामाइय छेय परिहार, सुहूम अहखाय देस जय अजया । चक्खु अचक्खु ओही, केवल दंसण अणागारा ॥ १२॥ किण्हा नीला काउ, तेऊ पम्हा य सुक्क भव्वियरा । वेयग खइगुवसम मिच्छ, मीस सासाण सन्नियरे ॥१३॥ आहारेयर भेया, सुरनरयविभंगमइसुओहिदुगे । सम्मत्ततिगे पम्हा, सुक्कासन्नीसु सन्निदुगं ॥१४॥ तमसन्निअपज्जजुयं, नरे सबायर अपज्ज तेउए। थावर इगिदि पढमा, चउ बार असन्नि दुदु विगले॥ १५॥ दस चरिम तसे अजयाहारगतिरितणुकसायदुअन्नाणे । पढमतिलेसाभवियर अचक्खुनपुमिच्छि सव्वे वि ॥१६॥ पजसन्नी केवलदुगे, संजममणनाण देसमणमीसे । पण चरिम पज वयणे, तिय छ व पजियर चर्खामि ॥१७॥ थीनरपणिंदि चरमा चउ, अणहारे दु सन्नि छ अपज्जा । ते सुहुम अपज विणा, सासणि इत्तो गुणे वुच्छं ॥१८॥ पण तिरि चउ सुरनिरए, नरसंनिपणिंदिभव्वतसि सव्वे । इगविगलभूदगवणे, दु दु एगं गइतसअभव्वे ॥१९॥ वेय तिकसाय नव दस, लोभे चउ अजय दुति अनाणतिगे। बारस अचक्खुचक्खुसु, पढमा अहखाइ चरम चऊ ॥२०॥ मणनाणि सग जयाई, सामाइयछेय चउ दुन्नि परिहारे । केवलदुगि दो चरमा-जयाइ नव मइ सुओहिदुगे ॥२१॥ अड उवसमि चउ वेअगि, खइए इक्कारमिच्छतिगि देसे। सुहुमे य सठ्ठाणं तेरस, जोगे आहार सुक्काए॥ २२॥

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