Book Title: Mohan Sanjivani
Author(s): Rupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मोहनामा mmsm सर्वत्र यो ‘मोहनलालजी' ति, प्राप्तः प्रसिद्धि परमां महात्मा । स्वर्ग गतं सच्चरितं पवित्रं, नमामि नित्यं मुनिमोहनं तम् ॥ १॥ श्रीभारतेऽस्मिन् मथुरासमीपे, श्रीसुन्दरीबादरमल्लपत्नी । सूते स्म यं चन्द्रपुरे सुयोगे, नमामि नित्यं मुनिमोहनं तम् ।। २॥ नैमित्तिकात् स्वप्नफलं विबुध्य, त्यागी स्वपुत्रो भवितेति मत्वा । तौ पश्यतो द्वौ पितरौ सुतं यं, नमामि नित्यं मुनिमोहनं तम् ॥ ३ ॥ धैर्य समालम्ब्य विहाय शोक, श्रीरूपचन्द्राय सुतं समय । सोढो वियोगः कठिनश्च यस्य, नमामि नित्यं मुनिमोहनं तम् ॥ ४ ॥ प्राप्ते यतित्वे हृदयं सशल्यं, ज्ञात्वा प्रबुद्धो भजते विरागम् । यस्तु क्रियोद्धारतया दिदीपे, नमामि नित्यं मुनिमोहनं तम् ।। ५ ।। For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 87