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मुनि भावोत्पत्ति
मुनि भावोत्पत्ति ___ संघ के आग्रह से आप एक बार कलकत्ता पधारे । ध्यान तो आपका जीवन का कार्य बन गया था। एक दिन जब आप ध्यान में तल्लीन हो रहे थे, शरीर व आंख की सारी चेष्टायें बंध थी, योगीन्द्र श्री पार्श्वनाथ भगवान का ध्यान चल रहा था उसी में आपने देखा एक काला नाग, फण उसका खुल्ला है, मुंह फाडे हुए है और चला आ रहा है। जब आपका ध्यान छूटा तो बार बार आप इस दृश्य पर विचार करने लगे, उनका हृदय कहने लगा यह जरूर कुछ दैवी संकेत है । अंत में आपने निर्णय किया-प्रभु की कृपा से ही मुझे चेताया गया है कि संसार का यही स्वरूप है। काल कराल सदा मुंह फाडे खडा है कब काल भक्षण कर जायगा, पता नहीं। फिर संसार में बांधने वाले इन परिग्रह आदि का क्या प्रयोजन ? ज्यों ज्यों आपकी विचारधारा तीव्र होती गई आपके विचार-स्पष्ट ओर निश्चित होने लगे।
अपूर्व गुणग्राहकता इसी अवसर में एक ऐसी घटना बन गइ की जिस का प्रभाव आप के हृदय पर बडा ही गहरा पडा, बात ऐसी बनी की सं. १९२८ का यह चातुर्मास आप का कलकत्ते में था। उस समय आप जैन रामायण पर हमेशां उत्तम शैलीसे प्रवचन किया करते थे, आप की वाणी में अनन्य साधारण माधुर्य था, विषय प्रतिपादन शैली जनाकर्षक थी, इससे जनता की भीड अधिक प्रमाण में जमती थी, शास्त्रश्रवण के अभिलाषी गुजराती श्रावक लोक भी
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