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मोहन-संजीवनी
करना आवश्यक समझता हूं और वह है यह कि-जो मुहूर्त आपने निश्चित किया है उस में एक अवजोग ऐसा है जो आपकी केरीटी में कुछ हानि पहूंचावे ।
बाबूजीने कहा-गुरुदेव ! भावि में जो होनहार होगा वह अवश्य होवेगा ही, आप तो जानते ही हैं कि-जो कुछ भी शुभाशुभ होना कर्माधीन है, इस समय सब तयारी हो चुकी है अतः इसी समय कर लेने की भावना है, यदि इस समय न किया जाय तो आगे निकट के भविष्य में हो सकना कम सभव है, वास्ते इसी वर्ष हो जाना उत्तम है, आप स्वीकृति देने की कृपा करें।
महाराजश्रीने ‘जहासुक्खं' जैसी तुमारी भावना कहकर स्वीकृति दे दी, बाबूजी खूब २ आनंदित हुए, एवं तडामार तैया रियां करनी प्रारंभ कर दी। और भारी धूमधाम के साथ सं. १९४९ की माघ शुद १० के दिन मुनिराज श्री मोहनलालजी ने अंजनशलाका करवाइ।
बाद में आप भावनगर व निकट वर्ती प्रदेश में विहार करते रहे व चौमासा निकट आने पर पुनः पालीताणा पधार गये। १९४९ का चातुर्मास आपने श्री सिद्धाचलजी की पुनीत छाया में किया। ___यहीं आपने आषाढ शुद ६ को यति श्री रामकुमारजी को दीक्षा दी। यतिजी भी महाराजश्री की तरह ही स्वयं अनुभव कर वैराग्यरंग में तल्लीन व एक रंग हुए थे। चूरू की समृद्ध गादी का परित्याग कर आपने भवभयहारिणी भागवती हीक्षा अंगीकार की।
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