Book Title: Mohan Sanjivani
Author(s): Rupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 62
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मोहन-संजीवनी दंड प्रायश्चित तो संघ का बहुमान है, यदि परदेश में जानते अजानते भी उन्हें कोई दोष लगा हो तो वे एक स्नात्र पूजा पढा कर श्री नमस्कार महामंत्र की एक पूरी माला गिन लें। महाराजश्री का निर्णय सुनते ही उपाश्रय महाराजश्री की जयध्वनि से गुंज उठा। सबको खुशी हुइ, भाइ से भाइ गले लगा। __ यों एक बहुत बड़ी आपत्ति से समाज बच गया और पूर्ण ऐक्यता कायम रही। अपने चौमासों में आप खूब धर्मप्रभावना करते रहे। १९५२ की फागुन शु. ३ के दिन आपने गुलालवाडी स्थित श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ के मंदिर में मूलनायजी के आजुबाजू में श्री ऋषभदेव प्रभु व श्री वासुपूज्यस्वामि की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाइ । फाल्गुन शु० ४ के दिन श्री शामलिया पार्श्वनाथ (संभवतः गोडीजी में ) प्रभु की प्रतिष्ठा करवाइ । इसी चातुर्मास में आपही के उपदेश से मुर्शिदाबाद निवासी रायबहादूर सेठ बुधसिंहजीने २००००) बीस हजार रुपयों के खर्च से श्री मोतीशाह सेठ की लालबाग वाली जगह में भव्य उपाश्रय तैयार करवाया। सं. १९५३ की मृगशिर कृ० ५ को आपने बम्बई से अहमदाबाद की ओर विहार किया और क्रमशः सुरत भरूच आदि होते हुए अहमदाबाद पहुंचे इस समय महाराजश्री के पुण्यप्रभाव से एक विशिष्ट घटना ऐसी बनी कि जिस से संघ में आनंद आनंद छा गया। बात ऐसी थी कि-महाराज का प्रवेश समय करीब दो ढाइ बजे दुपहर का था, ऋतु ग्रीष्म पूरजोर थी, लोक For Private and Personal Use Only

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