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विहार-शिष्य परिवार
स्थिरता कर श्री युगादिदेव की भाव भक्तिकर पुनः वहां से विहार कर आप पाटण पहुंचे। __ पाटण गुजरात का गौरवपूर्ण शहर है। अनेक उत्थान पतन इसने देखे थे। पट्टनी लोग अपनी मुत्सद्दीगिरी के लिये भी प्रसिद्ध है। यहां के व्यापारी भी स्थान स्थान पर जा कर सिद्ध हस्त सिद्ध हो रहे है। जोहरात का भी बड़ा व्यापार था। जैनों का यह शिखरसा नगर है, अनेकानेक जैनमंदिर यहां है, प्रन्थ भंडार भी बड़ा है, श्रावक गण भी योग्य हैं। जब महा. राजश्री पाटण पहुंचे तो संघने ऐसा भव्य स्वागत किया जैसा पिछले कई वर्षों में किसी साधु का नहीं हुआ था। यशः श्री से समृद्ध व यशोमुनि के साथ मुनिश्री मोहनलालजी महाराज का प्रताप भी बढ़ रहा था। १९४१ का चातुर्मास पाटण कर पालणपुर पहुंचे। यहां भी संघने बहुत आग्रह कर आप की स्थिरता करवाइ व १९४२ का चातुर्मास भी करवाया।
पालणपुर से आप डीसा पधारें। वहां पालणपुर में लगातार आप की वैराग्य देशना से तृप्त और आत्मज्ञान को लाभ किये हुए श्रावक श्री बादरमलजी आये और दीक्षार्थ विनंति की । महाराजने उन्हें (१९४३) मार्गशीर्ष कृ. २ को दीक्षा दे श्री कांतिमुनि नाम रक्खा । यहां से आपने आबूजी एवं अन्य तीर्थों की यात्रा कर विहार करते करते जोधपुर पधारे, यहां श्री कांतिमुनिजी को बडी दीक्षा दी। श्री संघ का आग्रह था अतः महराजश्री कोई तीन महिने तक जोधपुर की जनता को धर्मोपदेशामृत का पान कराते रहे। विहार कर आप फलोधी पधारे ।
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