Book Title: Mohan Sanjivani
Author(s): Rupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूरत में प्रभावना सूरत में प्रभावना सूरत पहुंचना था, अनेक श्रावक सूरत तक साथ चलने महाराश्री की निश्रा में थे। गांव गांव घूमते, धोपदेश करते, सन्मार्ग दिखाते. त्याग करवा कर सन्मार्ग पर लोगों को लातेजैन साधुता की ध्वजा लहराते, महाराजश्री सूरत की तरफ आगे बढते जाते थे। रास्ते में आप धोलेरा पहुंचने वाले थे और वहां आपका एक दिवस का मुकाम भी था। जब आप सन्निकट पहुंचे तो मालूम हुआ कि तपागच्छीय-ख्यातनामा पू० आचार्य श्री विजयानन्दसूरि-प्रसिद्ध नाम आत्मारामजी महाराज भी आज ही इस क्षेत्र में पधार रहे हैं, और उनका स्वागत हो रहा है, बाजे बज रहे हैं, श्रावक साथ में थे। उन्होंने पूछा महाराजश्रो ! हम गांव में जाकर सूचित कर आवे। पर इन महात्मा को तो कीर्ति का मोह छू भी नहीं सका था। आपने सोचा अकस्मात हमारे समाचारों से शायद उनके स्वागत में कुछ बाधा आ जावे तो ? अतः अपने को गांव से बहुत दूर रुक जाना चाहिये और जब शांतिपूर्वक सारा कार्य हो जावे तो गांव में चलेंगे। श्रावक कुछ तो अंदर के अंदर जल गये, कुछ को महाराजश्री की उदारता और समयज्ञता और सहिष्णुता पर गौरव हुआ। महाराजश्रीने कुछ समय विश्राम कर जब यह ध्यान में आ गया कि शहर में अब शांति है, कोइ बाजा नहीं बज रहा है, आप चुपचाप अपने परिवार को साथ लिये चलते रहे । चुपचाप आप सीधे श्री आत्मारामजी महाराज जहां व्याख्यान दे रहे थे, उसी उपाश्रय में जा पहुंचे। नाम तो सबमे सुना था पर श्री संघ के अनेक व्यक्ति दर्शन से वंचित थे, जब आवाज उठी कि For Private and Personal Use Only

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