Book Title: Mohan Sanjivani
Author(s): Rupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 50
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ माहन - संजीवनी सौराष्ट्र व कच्छ गोढवाड व बडी अहमदावाद व पालनपुर, मारवाड सभी स्थानों से जैन समाज के लोग यहां आ बसे थे विकसे थे । मन्दिरों की स्थापना की थी । उनमें उत्सव - महोत्सवों की धून मची रहती थी । धार्मिक क्रियाओं के लिये, साधु मुनिराजों के लिये उपाश्रय भी थे पर अभी तक कोइ जैन साधु बम्बई नहीं पहुंचा था। भारत की सिरमोर इस नगरी तक पहुंचने का सौभाग्य किसी को प्राप्त नहीं हुआ था । अपने चरित्रनायक ही सर्व प्रथम साधु थे, जिन्होंने सुरत से कच्चे रास्ते यहां तक आने की हिम्मत की। जैन कौम अग्रगण्य व्यापारी कौम होने से उसके संबंध सभी समाजों से थे । 'जैनों के एक बहुत बडे महात्मा आनेवाले है' के संवाद ने सबके मन में चतन्य भर दिया था। स्वागत की अभूत पूर्व तैयारियां हो रहीं था। सभी तरह के लोग शामिल हो गये थे । सं. १९४७ का चैत्र शु ६ का दिवस बम्बइ की जैन कौम के लिये गौरव का रहेगा। इसी दिन बालब्रह्मचारी महाप्रभावक मुनि श्री मोहनलालजीने सर्व प्रथम भाइखला स्थित श्री मोतीशाह सेठ के दादावाडी युक्त श्री आदीश्वर प्रभु के प्रासाद के साथ में उपाश्रय में प्रवेश किया। वहां से आप अपने छ शिष्यों सहित लालबाग आये । यह जलूस बहुत भारी था । तत्कालीन वर्त्तमानपत्रों के अवलोकन से जान पडता है कि- लार्ड रिपन को जो सम्मान मुंबई की जनता से सम्मान मिला था उस से भी कहीं अधिक सम्मान मुनिश्री का इस समय हुआ था | जोहरी लोगोंने मोतियों से महाराजश्री की वधाइ करी, जयनादों से रास्ता गुंज उठा था । घर घर में से इन महात्मा का दर्शन करने लोग निकल पड़े थे। श्री संघ के प्रत्येक व्यक्ति के For Private and Personal Use Only

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