Book Title: Mohan Sanjivani
Author(s): Rupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 51
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गहती शासनन्नोति दिलमें उत्साह समाता नहीं था। लालबाग पधार महाराजश्रीने मंगलाचरण सुनाया। जैन साधु का चातुर्मास याने चार महिनों के लिये, त्याग, तपस्या, जप, संगीत-उत्सव आदि का जमघट । रोज व्याख्यान होते, कइ मानवी नित नये भिन्न भिन्न प्रकार के त्याग करते । महाराजश्री नैतिकता और शुद्ध ब्रह्मचर्य के जबरदस्त प्रचारक थे। चतुर्थवत के मजबूत होने पर ही मानव का विकास शीघ्र हो सकता है यह आपकी पक्की मान्यता थी। आपके उपदेशों से कोह सौ से ऊपर व्यक्तियोंने आजन्म ब्रह्मचर्य पालने का व्रत लिया ओर चार हजार से ऊपर व्यक्तियोंने परस्त्रो को मातयन समझने का अर्थान परस्त्री त्याग का व्रत लिया। अन्य अन्य प्रकार के व्रत नियम और त्याग की तो गणना ही नहीं। उपर की संख्या से पाठक स्वयं कल्पना कर सकते हैं कि महाराजश्रो के उपदेश से जनता में कितनी धर्मभावना जागृत होती थी। ध्यान रहे उन दिनों बम्बइ की जन संख्या आज की तरह ३०-३५ लाख नहीं थी। उस में भी जैनों की संख्या भी पूरी सीमित थी । संख्याको ध्यान में लेने से यह सहज ही ध्यान में आ जाता है कि महाराजश्री के उपदेश में कितना प्रभाव था। कोइ २० हजार के आसपास की जैनो की संख्या में इतना त्याग महत्व पूर्ण है। केवल धार्मिक कार्यों के प्रति ही महाराजश्री की लगन नही थी। इसे मुख्य मानते हुए भी आपने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य किया। इसो चौमासे में आपश्री के उपदेश से मुर्शिदावाद निवासी रायबहादुर बाबु बुधसिंहजी दुधेडियाने १६ हजार मपियों का दान दिया। बम्बइ में आने वाले यात्रिकों के सार्व For Private and Personal Use Only

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