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विहार-शिष्य परिवार
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व धर्मपरायण व्रतधारी श्रावक श्री तेजमालजी पोरवाल व व्यवहार कुशल एवं साधु-साध्वियों की अनन्य भक्ति करने वाले श्रावक शिरोमणि श्री चांदमलजी छाजेड के नेतृत्व में हमेशां संघ में विविध प्रवृत्तियां चला करती थी। किसी भी साधुको पाली में प्रवेश करते समय पूरा सचेत रहना पड़ता था। कच्चे-पाचे साधुओं को यहां निभना मुश्किल था। महाराजश्री के पूर्व ही उनका यश तो पहुंच ही चुका था । पाली पधारने पर पाली के जैन श्री संघ व जनताने आपका अपूर्व स्वागत किया। महाराजश्री के पधारने पर घर घर में चेतना फैल गइ । श्री संघने अत्यंत आग्रह कर चातुर्मास करने की हाँ ली। खूब तपस्या हुइ, उत्सव-महोत्सव हुए। पाली श्री संघ में खूब आनन्द फल गया। यों आपका संवेगभाव धारण करने बाद सं० ४१९३१ का प्रथम चातुर्मास पाली में हुआ। चातुर्मास की पूर्णाहुति के बाद आपने जब विहार किया तो अनेक नर-नारियों की आंखों से अश्रुमोती झरने लगे। कई लोग दो दो चार चार मुकामों तक आपको पहूंचाने गये। महाराजश्री प्रामानुग्राम विचरते, उपदेश देते क्रमशः सिरोही पधारे, संघने स्वागत किया। तत्कालोन नरेश श्री केशरसिंहजीने जब आपके व्यक्तित्व के संबंध में सुना तो दौड आये। श्री संघ के साथ आपने भी आग्रह किया कि महाराजश्री चातुर्मास सिरोही में ही करें। लाभ का अवसर जान
x यह संवत्संख्या मूल चरित्रानुसार गुजराती पद्धति से लिखी गइ है, अतः राजस्थानादि की अपेक्षा चैत्र शु० प्रतिपदा से लगाके दीवाली से पहले के प्रसंग में एक वर्ष अधिक गिनने का सर्वत्र ध्यान रखने का अर्थात् १९३१ के बदले ३२ से प्रारंभ करके १९६३ तक के चोमासे गिनने ।
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