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मोहन- संजीवनी
है । लेकिन साधुओं के लिये तो मुख्य दो ही बातों का फरक है । एक तो पर्युषण का और दूसरा तिथि का ।
१ पर्युषण का फरक ऐसे है कि श्रावण या भाद्रपद की वृद्धि में खरतरगच्छ वाले ५० वें दिन संवत्सरी कर लेते है जब कि तपगच्छ वाले ८० वें दिन संवत्सरी करते हैं ।
२ तिथि की बाबत में एसा है कि अन्य तिथि की क्षय वृद्धि में तो साधुओं को विशेष हरकत आवे वैसा नहीं है, परंतु चउदस की या तो पूनम अमावास्या की क्षय और वृद्धि में दोनों की पाखी अलग अलग होती है ।
इनके सिवाय भी कितनी ही बातों का फरक परूपणा में है जैसे कि ।
३ प्रभु श्री महावीरदेव का दोनों माताओं की कूख में आना जो हुआ उस में दोनों माताओंने १४ स्वप्न देखे अतः दोनों माताओं की कूख में प्रभु का आना कल्याणकारी मानने से अपने प्रभु महावीर के छ कल्याणक मानते हैं, जब कि वे लोग गर्भापहार होकर देवानंद की कूख से रानी त्रिसला की कुख प्रभुका आना अकल्याणकभूत आवर्य रूप व अति निंदनीय मान कर कल्याणक ५ ही मानते हैं ।
में
४ श्रावक को सामायिक लेने में खरतरगच्छ वाले पहले करेमि भंते ! उचर कर सावद्य योग रूप मल को त्यागे पीछे इरिया वहिया पंडिकम के भूतकाल में लगे सावध रूप मल की शुद्धि करना बताते हैं । तपगच्छ वाले पहले इरियावहिया पडिकम के पीछे करेमि भंते उचरनी बताते हैं ।
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