Book Title: Mohan Sanjivani
Author(s): Rupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 46
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मोहन- संजीवनी श्चित मार्ग में हुं. फिर मुझे कौन ऐसा गुरु मिलेगा ? क्यों न मैं इन की ही चरण सेवा स्वीकार कर लूं ? तत्काल विनंति की कि महाराज ! अपना शिष्य बनाने की कृपा करें। " योग्य समझ महाराजश्रोने उसे १९४४ के चैत्र सुद ८ को दीक्षा दे श्री हर्षमुनि नाम दिया। यहां से आप अहमदाबाद पधारे। व १९४४ का चातुर्मास अहमदाबाद विद्याशाला के उपाश्रय में किया ! अहमदाबाद तो जैनपुरी कहलाता है, जैनों के यहां अनेक मन्दिर है, उपाश्रय है। अनेक प्रवृत्तियां यहां चलती रहती है। अनेक साधु साध्वियों के दर्शनका यहां योग मिला ही करता है। महाराजश्री की कीर्ति तो पहले ही फैली हुइ थी। श्री संघने चातुर्मास करवा ही लिया । महाराजश्री के उपदेश का अपूर्व प्रभाब पडा। कहते हैं अहमदाबाद में ४०० श्रावक चौथे व्रत (ब्रह्मचर्य) को धारण करने वाले थे, उनकी संख्या बढ कर आपके चौमासे में ८०० की हो गइ। पाठक अंदाज लगा सकते हैं कि अन्य व्रत-तपस्या आदि तो कितने हुए होंगे। खूब धर्मप्रभावना हुइ:। ___ यहां से विहार कर आप पालोताणा पधारे । ९९ यात्रा करने का मनोरथ पूरा किया। १९४५ का चातुर्मास भी गिरि राज की पवित्र छाया में कर समय का सदुपयोग किया। कार्तिकी पूर्णिमा पर आनेवाले अनेक यात्रियों में सूरत के भी अग्रगण्य श्रावक आये थे। उन्होंने महाराजश्रो से अर्ज की कि वे सूरत अवश्य पधारें। महाराजश्रीने भी क्षेत्र स्पर्शना समझ हां भर ली और पालीताणा से मृरत की ओर विहार किया। For Private and Personal Use Only

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