Book Title: Mohan Sanjivani
Author(s): Rupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 52
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मोहन-संजीवनी जनिक उपयोगार्थ लालबाग के साथ की धर्मशाला उसीमें से तैयार हुइ। चोमासे बाद वैराग्यरंग से रंजित दो वैरागियोंने महाराजश्री के पास बम्बइ में दीक्षा भी अंगीकार की। एक थे अहमदाबाद निवासी श्री सांकलचंदभाइ जिनका नाम बाद में श्री सुमतिमुनि तथा दूसरे थे वडनगर निवासी श्री हरगोविन्दभाइ जिनका नाम श्री " हेममुनि" रक्खा गया। ये दिक्षाएं सं. १९४८ की मार्गशीर्ष शु. ५ को संपन्न हुई। बम्बइ के जौहरियों में सुरत निवासी श्री धरमचंद उदयचंद अग्रगण्य थे। आपने महाराजश्री के समक्ष प्रतिज्ञा की कि जब तक में छ"" पालन करता हुआ xश्री संघको पालीताणा ने ले जाऊं तब तक ईखका रस न पीउंगा । इस तरह आपने विविध धार्मिक व सामाजिक कल्याणमार्गों में अपना चातुर्मास व्यतीत कर विहार कर सूरत पधारे। १९४८ का चातुर्मास सूरत में ही हुआ। इसी चातुर्मास में महाराजश्री के उपदेश से कतार गांव की धर्मशाला का जीर्णोद्धार करने की स्वीकृति श्री संघने ली । ज्योंही चातुर्मास पूर्ण हुआ। श्री धर्मचंद उदयचंद जौहरीने आकर सादर विनंती करते हुए, अपनी प्रतिज्ञा की याद दिलाकर श्री संघ में साथ रहकर धार्मिक नेतृत्व करने का आग्रह किया। महाराजश्रीने स्वीकृति दी। सं. १९४९ के पौष वद '५ को श्री संघ पालीताणा के लिये रवाना हुआ। संघ में करीव ५०० मनुष्य थे। x छ “री" का अर्थ यह है कि जिनके अंत में '' अक्षर आवे वैसे एकल आहारी आदि छ नियमों को पालना । For Private and Personal Use Only

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