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मोहन-संजीवनी
अनुयायी व उनके प्रति पूर्ण श्रद्धान्वित थे। पाटन जैसे प्रसिद्ध व्यापारी व प्रधान नगर में दादावाडी योग्य रूप में न होना महाराजश्री को खटका । आपने सुप्रसिद्ध जौहरी सेठ पूर्णचन्द के सुपुत्र बाबू पन्नालालजी से बात की। बाबू साहब भी दादाजी के भक्त तो थे ही फिर महाराजश्री की प्रेरणा मिली। उन्होंने शीघ्र ही नगर के बाहर निज के बगीचे में दादासाहब का मंदिर तैयार करवाया उस में पूज्य मुनिराज श्री मोहनलालजी महाराज के करकमलों से दोनों दादासाहिब के चरणों की प्रतिष्ठा बडे समारोह के साथ संपन्न हुई।
प्रतिष्टात्रितय पाटन से आपने सूरत की तरफ विहार किया। इस समय ९ शिष्य आपके साथ में थे। फागण शु. ६ को आपका बडे धूमधाम से सूरत में प्रवेश महोत्सब हुआ। शासन प्रभावना की प्रवृत्तियों में फिर वेग आया। श्री प्रेमचंद रायचंद की विशाल धर्मशाला में महाराजश्री को ठहराया गया था। (१९५५) का यह चातुर्मास आपका यहीं हुआ। प्रति दिवस अनेक लोग महाराजश्री के उपदेश श्रवण को आते थे। इसी वर्ष सूरत में कइ महान् प्रतिष्ठा महोत्सव हुए। श्री सूरजमंडन पार्श्वनाथ, श्री कुंथुनाथ भगवान् व श्री मनमोहन पार्श्वनाथ भगवान् की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा खूब उत्साह भरे वातावरण और ठाठ से हुइ । श्री कतार गांव के मंदिरजी का जीर्णोद्धार भी आपके उपदेश से संपन्न हुआ।
मुनिश्री की वाणी से हजारों आदमी आत्मशांति पाते थे। वैराग्य की इस पावन गंगा में प्रतिदिन हजारों प्राणी म्नान कर
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