Book Title: Mohan Sanjivani
Author(s): Rupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नामकरण ३ स्वप्न का वृत्तांत उन्हें सुनाया गया। पंडितजी को भी अनहद खुशी हुइ और पत्नी से कहा कि अब अपनी इच्छा पूर्ण होगी। अवश्य तेरी कूख से एक यशस्वी पुत्र होगा। पूर्णचंद्र की तरह वह शांत और शांतिदाता होगा। उसके प्रताप से प्रभावित अनेक बड़े बडे लोग उसे अपना आदर्श मानेंगे। समय बीतते क्या देरी। बात की बात में ९ महिने ४ दिन बीत गये और वैशाख शु ६ सं. १८८७ में उत्तराषाढा नक्षत्र सिंहलग्न में माता सुन्दरबाइ के एक पुत्र हुआ । नामकरण जन्म से १० वा दिन नामकरण का था। अनेक मित्र व संबंधी निमंत्रित किये गये । उनका योग्य सत्कार किया गया। बालक को देख सभी को प्रसन्नता हुइ: और इस मोहिनीरूप राशिको देख पंडितजीने अपने पुत्रका नाम “मोहन" रक्खा । बड़े दुलार से मोहन की परवरिश होने लगी ओर मोहन भी शुक्लपक्ष के चंद्र की भांति ही बढता चला। योग्य समय आते अच्छा मुहूर्त देख विद्याध्ययन के लिये पाठशाला में प्रवेश कराया गया । कंठस्थ करने में बालक बडा तेज निकला, गुरुजी जो जो पढाते वह बालक बहुत जल्दी याद कर लेता । सात वर्ष की आयु में इतनी योग्यता आगइ कि गुरुजी इस बालक की प्रशंसा मुक्त कंठ से करने लगे। गृह त्याग भूतपूर्व जोधपुर राज्य में नागौर एक महत्त्वपूर्ण शहर है। यह बहुत प्राचीन नगर है, राजस्थान की यह वीरभूमि है, For Private and Personal Use Only

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