Book Title: Mohan Sanjivani
Author(s): Rupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 79
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधुओं को अंतिम शिक्षा पालन करते हुए जनसंघ और जैनधर्म की उन्नति का प्रयत्न करते रहना । जैनधर्म का जितना ज्यादे प्रचार होगा उतना हो भव्य जीवों का कल्याण होगा।" इस प्रकार अपने शिष्य परिवार में, उन्होंने दोनों समाचारी को स्थान दिया। स्वास्थ्य तो धीमें धीमें गिरता ही गया। सूरत में सदा खेद का वातावरण रहता। भक्त श्रावक आते, महाराजश्री के दर्शन करते त्याग करते, नियम लेते व्रत करते । महाराजश्री की अंतिम अवस्था लोगों को दिखने लगी थी । दानवीर लोग भी महाराजश्री के प्रति अपनी श्रद्धा-भक्ति बताने को आगे आये । सर्व प्रथम श्री नगीनचंद कपूरचंद जौहरीने एक लाख रुपयों का दान जाहिर किया, और इतना ही मपिया रावबहादूर शेठ श्री नगीनचंद झवेरचंदने । श्री देवकरण मूलजीने भी ११ हजार लिखे, यों यह २॥ लाख का फंड हुआ। आज इसी फंड के विजायसे, पाठशाला चलती है । पुस्तकालय चलता है और जो रुपया बच रहा है वह जीवदया में खर्च किया जाता है।। यों महाराजश्रीने अपने जीवनकाल में अंत समय तक शासनोन्नति और लोक कल्याण का कार्य चालू रक्या। उनके उपदेश से अनेकानेक कार्य संपन्न हुए हैं, कुछ का वर्णन उपर हो चुका है। कुछ का हम संक्षेप से नाम निर्देश मात्र कर देते हैं वरना संभब था कि यह छोटी सी पुस्तिका बड़ा आकार धारण कर लेती। For Private and Personal Use Only

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