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शानदार अंजनशलाका
था ? बाबूजीने प्रातःकाल ही अपने पुत्र नरपतसिंहजी को महाजश्री जिस गांव पधारे थे वहां भेजकर बहुत आग्रह पूर्वक विनंती करवाइ, महाराजश्रोने लाभ जानकर उसका स्वीकार किया और लौट कर पीछे पालीताणा पधारे, बाबूजीने खूब ठाठ के साथ अपूर्व स्वागत से आपका नगर प्रवेश करवाया, महाराजश्रीने धर्मशाला में आकर मांगलीक उपदेश सुनाया, बाद में बाबूजीने अपनी परिस्थिति को निवेदन करते हुए अंजनशलाका कराने को खूब आग्रह पूर्वक विज्ञप्ति करी।
अपने चरित्रनायक पूज्य गुरुदेव को इस बातका लोभ तनीक भी नहीं था कि मैं अंजनशलाका-प्रतिष्ठा करा के दुनिया में कुछ नामना प्राप्त करूं । अतः आपने फरमाया कि-महानुभाव ! यह महान् काम तो श्रीपूज्यों के हाथ से करवाना ठीक होगा,
और यह भी जानने में आया है कि-इस निमित्त आपने कुछ श्रीपूज्यों को आमंत्रण भी दिया है, यदि यह बात ठीक हो तो अब आप उनको निराश करें यह बात बिल्कुल ठीक नहीं लगती । उत्तर में बाबूजीने कहा कि महाराज साहब ! उनको किसी को भी निराश नहीं करेंगे, किंतु अन्यान्य प्रतिमाओं की अंजनशलाका वे लोग भले करें परंतु मूल गंभारे में विराजमान होनेवाली मूलनायकजी आदि प्रतिमाओं की अंजनशलाका तो आप गुरुमहाराज के पवित्र करकमलों से ही करानी है, वास्ते आप गुरुदेव कृपा कर के इस बात की स्वीकृति अवश्य प्रदान करें।
महाराजश्री ने फरमाया कि-भाग्यशालि ! ठीक, यदि तुमारी भावना ऐसी है तो 'जहासुक्खं', परंतु एक बात का सूचन
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