Book Title: Mohan Sanjivani
Author(s): Rupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 65
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिष्ठात्रितय पवित्र होते थे। कई लोग व्रत-पच्चक्खाण करते थे। इन्हीं लोगों में सूरत के सुप्रसिद्ध जौहरी सेठ फकीरचंद हेमचंद भी थे । महा. राजश्री के उपदेशने आप के अंतरद्वार खोल दिये थे। उन्हे संसारका क्षणभंगुर स्वरूप साफ साफ दिखने लगा। धन माल की तरफ का सारा मोह काफूर (दूर) हो गया । आपने महाराजश्री के चरण कमलों में शिष्य बनने की अभ्यर्थना की। महाराजश्रीने स्वीकृति देने पर बड़े हो ठाठ से दीक्षा हुइ, यह दीक्षा-महोत्सव भी अपूर्व था। सेठ के पास लाखों की संपत्ति थी, बडा परिवार था, यश था, सुख साधन थे। इस वैराग्य की बात से सारे सूरत शहर में वैराग्य की लहर चल निकली थी। हजारों दीन दुःखियो को हजारों रुपये व साधन बांटे गये और १९५५ की फाल्गुन शु ५ को बडे ठाठमाठ से यह दीक्षा महोत्सव संपन्न हुआ। नये. मुनिवर का नाम श्री पद्ममुनि रक्खा गया और श्री हर्षमुनिजी के शिष्य घोषित किये गये। इसी वर्ष महाराजश्री के मुख्य शिष्य श्री जसमुनिजी जो अमदावाद में थे, उन्हें शेठ मनसुखभाइ तथा जमनाभाइ भगुभाइ व लालभाइ दलपतभाइ आदि अग्रगण्यों की आगेवानी में अमदावाद के श्री संघने बड़े समारोह के साथ पंन्यासपद दिया। यह कार्य पूज्य पंन्यासजी श्री दयाविमलजी के हाथों संपन्न हुआ। अहमदाबाद के सभी निवासियोंने तो इस महोत्सव में यद्यपि हिस्सा लिया ही था फिर भी वहां के तथा बाहर के मारवाडी बंधु बहुत बड़ी संख्या में सम्मिलित हुए थे। महाराजश्री के १९५६-५७ के चातुर्मास भी सूरत ही में हुए । सं. १९५७ में आपके विनीत व विद्वान् शिप्य पन्यास श्री जस For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87