Book Title: Mohan Sanjivani
Author(s): Rupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 44
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ मोहन-संजीवनी - फलोधी श्री संघ के कइ वर्षों के मनोरथ पूरे हुए थे और महाराजश्रो को अब वे छोडना नहीं चाहते थे, उन्होंने चौभासे के लिये पूर्ण आग्रह किया। जोधपुर से भी श्री संघ के आगेवान आ पहूंचे । महाराजश्रोने एसी होड कभी नहीं देखी थी। जोधपुरवाले महाराजश्री को ले जाने का निश्चय कर आये थे तो फलोधीवाले भी घर आई गंगा को छोड़ने तैयार नहीं थे। अंत में गुरुवरने श्री यशोमुनिजी को जोधपुरवालों के साथ भेजा व कहा की सबका मन एकदम दुःखाकर आना उचित नहीं है। अभी तो आप लोग जाइये फिर मैं समझा बुझाकर आने की प्रयत्न करुंगा । श्री जसमुनिजी बिहार कर जोधपुर पहुंच गये, फिर भी श्री संघ का आग्रह श्री मोहकलालजी महाराज के लिये चालु ही रहा । चातुर्मास का समय समीप आने लगा-उधर गुरुमहाराज को पधारते नही देख श्री यशोमुनिने भी गुरु सेवा में जाने की बात बताई। जोधपुरवाले असमंजस में पड गये, वे गुरुमहाराज के पास पहुंचे, खूब आग्रह किया पर जब देखा की फलोधी क्षेत्र का छूटना कठिन है तो उन्होंने श्री जसमुनिजी को चौमासे में स्थिरता करने का अनुमति पत्र मांगा। महाराजश्रोने यह खुशी से दिया। श्री जसमुनिजीने भी गुरुआज्ञा शिरोधार्य समझ चौमासा जोधपुर में ही किया। आपने पूरे चातुर्मास आयंबिल की तपस्या की ओर व्याख्यान में श्री संघ को उत्तराध्ययन सूत्र सुनाया। श्री सघ में खूब हर्ष का वातावरण रहा तप जप भी बहुत हुआ। व गुरुमहाराज की दीक्षा वरन्त की भविष्यवाणी कि " तीसरे वर्ष व्याख्यान सुनावेगा" को सिद्ध हुइ । सच है महात्मा पुरुषों के वचन कभी अकारथ-निष्फल नहीं जाते। चातुर्मास पूर्ण होने पर For Private and Personal Use Only

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