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सूरत में प्रभावना
धोलेरा से विहार कर आपने खंभात में श्री स्तंभन पार्श्वनाथ प्रभु की यात्रा की। वहां से भरुच पधारे और श्री मुनिसुव्रतस्वामी के प्रासाद के दर्शन किये । यो यात्रा करते करते आप सुरत पहूंचे। सुरत के नर-नारियों के हर्ष का पार नहीं था । स्थान स्थान पर ध्वजाएं, पताकाएं बंधी थी, द्वार वनाये गये थे-जगह जगह महाराजश्री की वधाइ मनाइ जा रहीं थी-इस सारे कार्यमें “ श्री जैन विद्योतेजक मंडळी " ने अग्रगण्य हिस्सा लिया। धर्मप्रभावना होने लगी। उपदेशधारा वहने लगी। वैराग्यभाव से उमडते हुए दो श्रावकोंने-१ म्हेसाणा निवासी श्री उजमभाइ २ मालवा निवासी श्रो राजमलजीने जेठ कृ. एकादशी १९४६ को भागवती दीक्षा ग्रहण की । क्रमशः इनके नाम उद्योतमुनि व राजमुनि रक्खे गये । चातुर्मास में खूब ठाठ रहा । चातुमोस पूर्ण होने पर आप पुनः लौटना चाहते थे परंतु बम्बइ से श्रावकोंने आकर बहुत आग्रह किया । यों तो बम्बइ सुरत मिले हुए से थे और सारे चौमासे में सेठ साहुकारों का आना-जाना रहा था, सेठ लोग भी कैसे इस अवसर को हाथ से जाने देते। महाराजश्रीने लाभ का कारण व धर्मप्रभावना का अवसर जान सम्मति देदी। माघ कृ. ४ १९४७ को मातर निवासी श्री छगनलालभाई को दीक्षा दी व श्री देवमुनि नाम रक्खा। अब आपने बम्बइ की तरफ प्रस्थान किया।
___ महती शासनोन्नति बम्बइ उन्हीं दिनों में अधिक विकसित होने जा रहा था। भारत के कोने कोने से वहां व्यापारी, मजदूर पहुंच रहे थे। औद्योगिक विकास भी हो रहा था। सुरत, भरुच, बडोदा,
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