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· विहार-शिष्य परिवार
व्यतीत हुइ । वैराग्य की तीव्रता बढ़ती जा रही थी। प्रातःकाल हुआ और विहार कर आप क्रमशः जयपुर पधार गये । यह चातुमौस (सं. १८३०) जयपुर में ही हुआ। चातुर्मास के बाद आप विहार कर अजमेर पहुंचे।
यह प्राचीन नगर अनेक ऐतिहासिक घटनाओंसे संबद्ध है। सारे राजपूताना के राज्यों का ब्रिटिश निरीक्षण केन्द्र है ओर बडे दादा श्री जिनदत्तसूरिजी महाराज की स्वर्गवास भूमि है। यतिश्री मोहनलालजी के आगमन से श्री संघ में अत्यधिक हर्ष फैला हुआ है। महाराजश्री वैराग्य रस में निमग्न हैं। .. अच्छा मुहुर्त देख महाराजश्रीने प्रभु श्री संभवनाथजी की प्रतिमा समक्ष जा अपने सारे परिग्रह का त्याग किया पूर्ण पंच महाव्रत धारण किये व शुद्ध मुनिवेष को धारण कर ४३ वें वर्ष में क्रियोद्धार किया-संवेग भाव धारण किया। अजमेर नगरमें यह समाचार फैल गये । श्री संघमें खुशी खुशी छा गई । महाराजश्री की कीर्तिपताका लहराने लगी। बच्ने बच्चे की जबान कह रही थी" मुनिश्री मोहनलालजी महाराज की जय."
विहार-शिष्य परिवार मुनिश्री मोहनलालजी अब वर्तमान परिभाषा के यति नहीं रहे । उनका यह पूर्ण त्याग अनेक लोगों को आकर्षित करने लगा। गृहस्थ में से साधु बनना कइ अपेक्षाओं में सरल है पर
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