Book Title: Mohan Sanjivani
Author(s): Rupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मोहन-संजीवनी प्रजभूमि कहलाता है, यह सुरम्य है, प्राकृतिक सौन्दर्य से समृद्ध है, श्रीकृष्ण के भक्तों का परम धाम है, साधु-संतोका पुण्यागार है। इसी मथुरा के वायव्य में बसा हुआ एक छोटा ग्राम (चांदपुर) है। ब्रजभूमिका ही अंग होने से इसे भी तीर्थस्थानों में स्थान मिला ही है। और फिर यह भूमि मोहन मुरलीवाले भगवान् श्रीकृष्ण के बाद हमारे चरित्रनायक “ मोहन" को जन्म देकर ओर भी कृतकृत्य हो गइ है। ____चांदपुर में पंडित बादरमलजी सनाढ्य जाति के ब्राह्मण रहते थे। चांदपुर में पंडितजी सर्वमान्य व्यक्ति थे। इनकी धर्मपत्नि का नाम सुंदरदेवी था। दोनों पति-पत्नी बडे प्रेम से अपना जीवन निर्वाह करते थे। साधारण गृहस्थों की तरह आपको भी पुत्ररत्न की चाह तो थी ही । आप अपने क्रिया-भक्ति कर्मकांडों में परायण थे और उन्हीं में आपको अपनी इच्छा पूर्ण होती नजर आ रही थी। एकदा अपनी सुख निद्रा में सोती हुइ श्रीमती सुन्दरबाइ रात्रि के पिछले हिस्से में एक स्वप्न दर्शन करती है। उसे अनुभव हुआ कि अपनी पूर्ण कलाओं के साथ चन्द्र प्रकाशित है, और वह पूर्ण चंद्र उसके मुख में प्रवेश कर रहा है । तत्काल सुन्दरदेवी जाग खड़ी हुइ। उसके जी में अजीब सा कुतुहल मचा था पर उसके अंग अंग में शांति पसरी थी ओर कुछ अच्छा, बहुत अच्छा होगा यह उसकी आत्मा मान रही थी। उसने प्रभुनाम का स्मरण करना शरु किया। सुसंस्कृत पंडिता. इनको अन्य तृष्णा तो थी ही नहीं। गांवका सुखी जीवन था। पुत्ररत्न की आकांक्षा अवश्य थी। पतिदेव के जागृत होने पर For Private and Personal Use Only

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