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मोहन- संजीवनी
पत्र प्राप्त होने पर धर्मप्रचार का लाभ देख लाहोर की तरफ गुरुश्रीने विहार कर दिया । बनती त्वरा से आप १६४९ की फाल्गुन शु. १२ को लाहोर पधार गये । बहुत धूमधाम से आपका नगरप्रवेश महोत्सव हुआ । स्वयं सम्राटने खूब दिलचस्पी ली और खूब सत्कार किया । समय समय पर आचार्यश्री का उपदेश श्रवण करने लगा । उपदेशका सम्राट् पर पूरा प्रभाव पडा और आचार्यश्री के चारित्र व त्याग की छाप भी उस पर काफी मात्रा में पडी । सूरिजी की प्रेरणा से आषाढ चौमासी पर्व के ८ दिनों में कोई किसी जीवको न मारे, यह फरमान बादशाहने निकाल दिया । सम्राट् आपको बड़े गुरुके नाम से ही संबोधन करते थे । आप के इस अमारी फरमानका अन्य राजा महाराजाओं पर भी प्रभाव पडा और अपने अपने राज्यों में १० दिवस से लगाकर २ महिनों तक के अमारी घोषणा पत्र जारी किये । इस तरह आचार्यश्री के प्रभाव से अनेक जीवोंको अभयदान मिला व जैनधर्म की महती प्रभावना हुइ ।
आप के बाद अन्य ८ प्रभावक आचार्य हुए जिन्होंने समय समय पर अच्छे प्रभावना के कार्य किये हैं । ७० वीं पाट पर आते हैं शांतमूर्ति आचार्य श्री जिनहर्षसूरि, जिनके कर कमलोंद्वारा चरित्रनायकजी के यतिगुरु श्री रूपचंदजी यतिदीक्षा लेते हैं ।
दैवी संकेत पर संकेत
यति श्री रूपचंदजी गांव के सम्मान्य गुरु थे । नित्य अपने क्रियाकर्मों से मुक्त हो, आप लोगों के विभिन्न प्रश्नों का समाधान करते थे । स्वास्थ्य लाभ, रोगमुक्ति के हेतु भी लोग आप के पास
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