Book Title: Mohan Sanjivani
Author(s): Rupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 66
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मोहन-संजीवनी मुनिजीने गुरुवर्य की आज्ञानुसार अपने लघु गुरुभ्राता मुनि श्री हर्षमुनिजी को श्री भगवती सूत्र के गणियोग करवाये और बडे समारोह के साथ उन्हें गणिपद प्रदान किया। महाराज श्री अब ७० वर्ष के हो चुके थे, तपस्या हमेशां चालुही थी-शरीर कृश हो चला था अतः भक्तोंने आग्रह किया कि"अहोभाग्य होगा सूरत का, यदि आप अब यहां स्थायि रूप से बिराजे रहें !” पर ' साधु तो रमता भला' में श्रेय मानने वाले मुनिश्री को यह कब स्वीकार था ? कि वे कहीं के ठाणापति बन जांय । आपने कहा महानुभावो ! जब तक पैरों में शक्ति है साधु आचार के मुआफिक मैं एक स्थान पर नहीं रहूंगा। विहार की तैयारी होने लगी। सूरत छोडना था कि बम्बइ वालों के पास समाचार पहुंचे। बम्बइ के दानवीर शेठ देवकरण मूलजी की अगवानी में श्री संघ का प्रतिनिधि मंडल आया। भारत के प्रधान नगर-व्यापारी केन्द्र और साधुओं के आवागमन से प्रायः रहित बम्बइ पधारने की भावपूर्ण विनंति की। महाराजश्री ही प्रथम साधु थे जिन्होंने बम्बइ में प्रथम प्रवेश किया था तथापि अभी तक साधुओं का आवागमन जैसा चाहिये वैसा चालु नहीं हुआ था । महाराजश्रीने लाभालाभ का विचार किया । बम्बइ में साधुओं का जाना अधिक लाभ का कारण जान आपने विनंति स्वीकार कर बम्बइ की तरफ प्रस्थान किया । और क्रमशः बम्बइ पहुंचे। पौष शुद १५ सं. १९५८ को आपका बडे ठाठ से प्रवेश हुआ। स्थान स्थान पर नाना प्रकार की सजावटें हुइ थी। महा For Private and Personal Use Only

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