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मोहन-संजीवनी
भाव से, उदार हृदय व हाथों से श्री संघने तीर्थाधिराज श्री शत्रंजय महागिरि शिखरस्थ श्री युगादिदेव की यात्रा-अर्चना पूरी की। श्री धर्मचंदभाइ को श्री संघपति की माला पहनाइ गइ। बाद में शेठश्रीने संघ के साथ गुरुवंदन कर पुनः सूरत प्रस्थान किया।
शानदार अंजनशलाका तीर्थाधिराज शत्रुजय की तलहटी में जो विशाल प्रासाद है वह रायबाहादूर बाबू धनपतसिंहजी दूगड द्वारा निर्मित हुआ है। बाबूजी मुर्शिदाबाद-अजीमगंज के निवासी थे। और इस तीर्थक्षेत्र में यह मन्दिर बनवाया था। अभी अंजनशलाका होना बाकी था। उसी निमित्त बाबूजी अपने समग्र परिवार सहित पालीताणा आये थे और प्रतिष्ठा-अंजनशलाका की सब तयारी कर रहे थे। एतदर्थ कइ श्रीपूज्यों को आमंत्रण भी दे चुके थे। इसी अरसे में अपने चरित्रनायक मुनिप्रवर श्रीमन्मोहनलालजी महाराज संघ सहित यात्रार्थ पधारे और शांति से यात्रा कर अन्यत्र विहार भी कर गये। जिस दिन आपने विहार किया ठीक उसी रात्रि में बाबूजी की धर्मपत्नी श्रीमती मेनाकुमारी को स्वप्न द्वारा सूचन मिला कि-यह शुभ कार्य महान् शासनप्रभावक मुनिप्रवर श्रीमन्मोहनलालजी महाराज द्वारा ही संपन्न होगा। ___बाबूजी को स्वयं महाराजश्री के यहां के निवासकाल व कल. कत्ते के चोमासे में महाराजश्री का परिचय खूब ही हो चुका था,
और अपनी धर्मपत्नी को आये स्वप्न के सूचन को जानकर इतनी भारि प्रसन्नता हुइ कि जिसका सींग वर्णन होना इस क्षुद्र लेखनी की शक्ति के बहार का विषय है। बस फिर क्या कहना
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