Book Title: Mohan Sanjivani
Author(s): Rupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 71
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मवई " जामोद ननवा नामोहन पना सनसमनिसो जसेडनावाजतनसंगञ्छमारा डाया का निसटती ना शनिवार केहिनानाधा न सोमसहिनसे सवीतवरत का गडकीकरणामी वरवर कागद लेजका काम जर डालत. मारवार में मिक्विपातीकहन। गुजरात का है क बलांगहोय तोतेरापूसा बानायककायहाय सोलिरखना हमारासरिलितोठीक है जारसनं सं। १८४३ मिका(19 नर उमसेंकोर कहेगाकेउमरागुरु तपगा। कसमम्वारी करके तोकहेनानपारदर' मरगळक हाजीकमानते गजरात मे कोश्वासन कोतपानहाकर ही सब रक्त करतो उनका जीवनवरी में अकाजोधा नसमेतमा असानामवीनही है कारणके गजरात देश मेरहणकुवा नर यहासंघकनकलतासशरलदीत : से पसा वास्थि जसीदिनको लागये है उसकापरवपातनह। જય શ્રી માનલાલજી મહારાજે પોતાના ઘરે શિવ પં શ્રી યમુનિઓન લખેલ પત્ર For Private and Personal Use Only

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