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अनुपम समयज्ञता
आप का नाम ऋद्धिमुनि रक्खा गया व महाराजश्री के मुख्य शिष्य श्री जसमुनिजी के शिष्य घोषित किये गये।
पालीताणा में सारे चौमासे में लोगों का आवागमन चालू रहा । कहा जाता है कि इतने अधिक यात्री आये थे कि यात्रीयों को धर्मशालाओं में स्थान मिलना मुश्किल हो गया था । अतः लोगों को किराये से जगह लेनी पड़ी थी । ___ पालीताणा से आप पुनः सुरत पधारे । संघने अत्यंत आग्रह किया अतः आपने १९५० का चातुर्मास सुरत में ही बिताया। महाराजश्री को सुरत विराजते जान-अनेक श्रावक बम्बइ से भी महाराजश्री के दर्शनार्थ आये और सारे चौमासे भर महाराजश्री को पुनः बम्बइ पधारने का आग्रह करते रहे। परिणाम स्वरूप महाराजश्रो चौमासे की पूर्णाहुति होने पर बम्बइ पधारे । आठ शिष्य आप के साथ थे। सं. १९५१ का चैत्र शुद ७ को आपका पूरे ठाठ व सन्मान के साथ बम्बइ में प्रवेश हुआ। महाराजश्री के १९५१ व १९५२ के दोनों चातुर्मास बम्बइ में हुए ।
अनुपम समयज्ञता चौमासे के दिनों में यथावत् धर्मक्रियाएं उद्यापन आदि उत्सव महोत्सव होते ही रहते थे। प्रतिदिन व्याख्यान भी होता ही था। इन्हीं दिनों में एक महत्त्वपूर्ण अवसर आया। यदि महाराज श्री अपना समभाव जरा भी खो बैठते व रागद्वेष के वातावरण में घुस जाते तो शायद उनका जीवन ही पलट जाता। पर उन्होंने उस असाधारण प्रतिभा व सहनशीलता, समाज की एकता की
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