Book Title: Mohan Sanjivani
Author(s): Rupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 59
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुपम समयज्ञता शासन रसी" की उज्जवल भावनासे गये थे। पर रूढिचुस्त जैन समाजने उनको भी न छोडा । फिर भी समाज में समर्थक पक्ष भी था। इस पक्षने विचार किया कि बैरिस्टर साहब को सर्व प्रथम ( जहाज से उतरते ही) गुरुवंदनार्थ लाया जावे और मंगलाचरण सुनाकर उनने जो कार्य किया है उसके प्रति सद्भावना व प्रशंसा बताइ जावे। तदनुसार उस पक्ष के कुछ अग्रगण्य व्यक्ति महाराजश्री के पास आये और एतदर्थ मुनिश्री से अनुमति मांगी। महाराजश्री लकीर के फकीर नहीं थे, वे तो युगदृष्टा थे। उन्होने तुरंत अनुमति दे दी। बस फिर क्या था। बात फैल गइ, कार्यक्रम बन गया। दूसरे दिन बैरिस्टर साहब आ पहुंचने वाले थे। विरोधी पक्ष को जब बातें मालूम हुइ तो उनकी भौहें चढ गइ-उन्होंने नागाई का आश्रय किया । गुंडों को तैयार किया। डंडे बाजी की तैयारियां की । बम्बइ का जैन समाज खलबला उठा-पता नहीं था कल क्या होगा। ___ रात ढलने लग गइ थी। बम्बइ का वातावरण भी शांत होने लग गया था। साधु लोग भी पोरिसी पढाकर निद्रान्वित हो चुके थे। कोइ ११।। बजे होंगे कि विरोधी दलका एक अग्रेसर जो एक कच्छी भाइ था-आया महाराजश्री को जगाया और कहने लगा। ___ " महाराज साहब ! सुना है कि बैरिस्टर वीरचंदभाइ को जहाज से उतरने के बाद सीधा आप के व्याख्यान में लाने वाले हैं ! क्या यह सच है ?” महाराजश्री को झूठ बोलना नहीं था उन्होंने स्पष्ट उत्तर दिया कि "हां श्रावकोंने विचार तो ऐसा ही किया है।" For Private and Personal Use Only

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