Book Title: Mohan Sanjivani
Author(s): Rupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
७२
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुमोदयते विकाशयते. प्रणमामि मुदा सुगुरुं तमहम् ॥ ५ ॥
अधुनाऽपि यदीयसुकीर्त्तियश:शुभवासनवासितभक्तजनः ।
इह भाति निरीहसुभावघरं,
उपदेशसुवान्द्रिका भविक
प्रणमामि मुदा सुगुरुं तद्दमम् || ६ ||
इछ यो जिनशासनचन्द्रसमः,
कुमुदानि विकाश्य गतस्सुदिवम् ।
tomat
प्रणमामि मुद्रा सुगुरुं तमहम् ॥ ७ ॥
चरणे करणे गुरुशिष्यगणो,
अजनिष्ट
मोहन- संजीवनी
गुरुदेवसुभक्तिकरो निपुणः । जिनागमिकावगमे,
प्रणमामि मुदा सुगुरुं तमहम् ॥ ८ ॥
मुनिमोहन शिष्यकराजमुनि
गुरुसद्गुणगुम्फित संस्तवन.
लघुशिष्यकपाठकलब्धिमुनिः ।
समाप्त
विदधे जिनरत्नगुरो कृपया ॥ ९ ॥
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87