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विषय. देशभाषाकारनिर्दिष्ट अन्य ग्रंथानुसार आचार्य परंपरा । द्वादशांग तथा अंगवाह्य श्रुतका वर्णन । ... दृष्टान्त द्वारा भवनाशकसूत्रज्ञानप्राप्तिका वर्णन । ... सूत्रस्थ पदार्थोंका वर्णन और उसका जाननेवाला सम्यग्दृष्टी। ... व्यवहार परमार्थ भेदद्वयरूप सूत्रका ज्ञाता मलका नाशकर सुखको पाता
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टीकाद्वारा निश्चय व्यवहार नयवर्णित व्यवहार परमार्थ सूत्रका कथन। सूत्रके अर्थ व पदसे भ्रष्ट है वह मिथ्यादृष्टि है । हरिहरतुल्यभी जो जिनसूत्रसे विमुख है उसकी सिद्धि नहीं । ... उत्कृष्टि शक्तिधारक संघनायक मुनि भी यदि जिनसूत्रसे विमुख है तो वह
मिथ्यादृष्टि ही है। ... ... जिनसूत्रमें प्रतिपादित ऐसा मोक्षमार्ग और अन्य अमार्ग। सारंभ परिगृहसे विरक्त हुआ जिनसूत्रकथित संयमधारक सुरासुरादिकर
वंदनीक है। .... अनेक शक्तिसहित परीषहोंके जीतनेवालेही कर्मका क्षय तथा निर्जरा ___ करते हैं वे वंदन योग्य हैं।
.... .... .... इच्छाकार करने योग्य कोन। .... .... . इच्छाकार योग्य श्रावकका स्वरूप .... अन्य अनेक धर्माचरण होने पर भी इच्छाकारके अर्थसे अज्ञ है उसको भी सिद्धि नहीं।
... इच्छाकार विषयक दृढ उपदेश । ... जिनसूत्रके जाननेवाले मुनियोंके स्वरूपका वर्णन। यथाजात रूपतामें अल्पपरिग्रहग्रहणसे भी क्या दोष होता है उसका कथन जिनसूत्रोक्त मुनिअवस्था परिग्रह रहित ही है परिग्रहसत्तामें निंद्य है। ... प्रथम वेष मुनिका है तथा जिन प्रवचनमें ऐसे मुनि वंदना योग्य हैं।... दुसरा उत्कृष्ट वेष श्रावकका है। .... तीसरा वेष स्त्रीका है ।
.... ... .... ... वस्त्रधारकोंके मोक्ष नहीं, चाहे वह तीर्थकर भी क्यों न हो मोक्ष नग्न . ( दिगम्बर ) अवस्थामें ही है। ...
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