SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : तया तीव्रमायातया तीव्रलोभतया तीव्रदर्शनमोहनीयतया तीव्र - चारित्रमोहनीयतया 1 प्रश्न - [ चारित्र ] मोहनीय कर्म के शरीर का प्रयोगबन्ध किस प्रकार होता है ? उत्तर - गौतम ! तीव्र क्रोध करने से, तीव्र मान करने से, तीव्र माया करने से, ती लोभ करने से, तीव्र दर्शन मोहनीय से और तीव्र चारित्र मोहनीय से । १५० ] ******** वक्तारम्भपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः । ६. १५. चउहिं ठाणेहिं जीवा रतियत्ताए कम्मं पकरेंति, तं जहामहारम्भता महापरिग्गहयाते पंचिदियवहेणं कुणिमाहारेणं । स्थानांग० स्थान ४ उ० ४ सूत्र ३७३. छाया - चतुर्भिः स्थानैः जीवा नैरयिकत्वाय कर्म प्रकुर्वन्ति । तद्यथा - महारम्भतया, महापरिग्रहतया, पञ्चेन्द्रियवधेन, कुरण पाहारेण । भाषा टीका - जीव चार प्रकार से नरक आयु का बन्ध करते हैं :- बहुत आरम्भ करने से, बहुत परिग्रह करने से, पंचेन्द्रिय जीव के बध से, और ( मृतक ) मांस का हार करने से । संगति – यहां सूत्र की अपेक्षा विशेष कथन किया गया है। माया तैर्यग्योनस्य । ६, १६. हिं ठाणेहिं जीवा तिरिक्खजोणियत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा - माइल्लता ते णियडिल्लता ते अलियवयणेणं कूडतुल कूडमाणेणं । स्थानांग स्थान ४ उद्देश्य ४ सूत्र ३७३. छाया चतुर्भिः स्थानैः जीवाः तिर्यग्योनिकत्वाय कर्म प्रकुर्वन्ति । तद्यथामायितया, निकृतिमत्तया अलीकवचनेन कूटतुला कूटमानेन । - भाषा टीका - चार प्रकार से जीव तिर्यञ्च आयु का बन्ध करते हैं - छल कपट से, छल को छल द्वारा छिपाने से, असत्य भाषण से और कमती तोलने और नापने से ।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy