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[ १८ ] उल्लेख 'शास्त्रादौ सूत्रकाराः प्राहुः' इस रूप से करते हैं पर इसकी पुष्टि में अभी कोई दूसरा प्रबल प्रमाण नहीं मिला है। यदि यह तत्त्वार्थसूत्र का अविभाज्य अङ्ग होता तो इस पर आचार्य पूज्यपाद और अकलंकदेव अवश्य ही टीका लिखते । अभी तो केवल इतना ही कहा जा सकता है कि आचार्य विद्यानन्द इसे तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता का मङ्गलाचरण मानते रहे हैं । यह भी सम्भव है कि सूत्रकार से उनका मतलब तत्त्वार्थसूत्र के पिछले सभी टीकाकारों से रहा हो । जो कुछ भी हो अभी यह प्रश्न विचारणीय है। __ इतिहास का विषय जितना श्रम साध्य है उतना ही वह गवेषणात्मक भी है। प्रस्तुत प्रस्तावना मुझे दो तीन दिन में ही लिखनी पड़ी है। यदि सब प्रकार की सुविधा मिल सकी तो इस विषय पर मैं सांगोपांग प्रकाश डालने का प्रयत्न करूँगा ऐसी मुझे आशा है। श्रावण शुक्ला १५
फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री वी० सं० २४७६