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मुमुक्षुओ को इन वचनो का स्वाध्याय प्रतिदिन अवश्य करना चाहिये।
प्रस्तुत संकलन तैयार करते समय श्री उत्तराध्ययन सूत्र तथा श्री दावकालिक सूत्र का पूर्णरूप से उपयोग किया गया है। आजतक उपर्युक्त दोनो ग्रन्थ-रत्नो की कई आवृत्तियां प्रकाशित हो चुकी है और उनमे गाथाओ के क्रमांक मे एक-दो का अन्तर आता है। अतः प्रस्तुत सकलन को प्रचलित आवृतिओ के साथ मिलाने पर कही-कही एकाघ-दो गाथाओ का अन्तर होने की सम्भावना है, जिसे पाठकगण किसी प्रकार की त्रुटि न समझे। ठीक वैसे ही मूल गाथाओ मे भी कही-कही पाठान्तर हैं जो टीकाकारो के अभिप्राय एव अर्थ-सगति को परिलक्षित करते हुए योग्य रूप से रखे गये है। अतः उसमे भी प्रचलित आवृत्ति की अपेक्षा कुछ स्थानो पर अन्तर होना स्वाभाविक है। लेकिन जब तक इन दोनो ग्रन्थो की सर्वसामान्य आवृति तैयार न की जाय तबतक यह स्थिति बनी ही रहेगी।
प्रस्तुत हिन्दी सस्करण मे भगवान् महावीर के १००८ वचनो का सग्रह ४० धाराओ मे सुव्यवस्थित ढग से उपस्थित किया गया है। अतः पाठकगण किसी भी विषय पर भगवान् का मंतव्य क्या था, वह आसानी से जान सकेगे। फिर प्रत्येक वचन के नीचे उसका मूल आधारस्थान संकेत द्वारा सूचित किया गया है और स्पष्ट-सरल अनुवाद साथ योग्य विवेचन भी दिया गया है। आखिर मे अति आवश्यक समझ कर प्रकाशित वचनो का अकारादि क्रम भी जोड़ दिया है।