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निश्चय सम्यग्ज्ञान]
६३१, जैन-लक्षणावली
[निषद्यापरिषहविजय
लक्षणं वीतरागचारित्राविनाभतम, तदेव निश्चय- का नाश होता है, इसे निश्चय हिंसा कहा जाता सम्यक्त्वम् । (परमा. व. १४३)। ४. तेषामेव है। अभिप्राय यह है कि अपनी अपनी भावनाभूतार्थेनाधिगतानां पदार्थानां शुद्धात्मनः सकाशात् रूप निश्चय प्राण के विधात की कारणभूत भिन्नत्वेन सम्यगवलोकनं निश्चयसम्यक्त्वम् । (सम- रागादि परिणति को निश्चय हिंसा जानना यप्रा. जय. व. १६५)। ५. मिथ्यार्थाभिनिवेश- चाहिए। शन्यम् Xxx।(अन. ध. १-६१)3; मिथ्या निश्चयालोचन-निजशद्धात्मोपलम्भबलेन वर्तमाविपरीतः प्रमाण बाधितोऽर्थो मिथ्यार्थः, सर्वथकान्त- नोदयागत शुभाशभनिमित्तानां हर्ष-विषादादिपरिमिथ्यार्थस्याभिनिवेश प्राग्रहो मिथ्यार्थाभिनिवेश:, णामानां निजशुद्धात्म द्रब्यात् पृथक्करणं निश्चयातेन शून्यं रहितम् । अथवा मिथ्या अर्थाभिनिवेशो लोचनम् । (परमा. व. १६१)। यस्मात् तन्मिथ्यार्थाभिनिवेशं दर्शन मोहनीयं कर्म, अपनी शद्ध प्रात्मा की उपलब्धि के बल से वर्ततेन शून्यमात्मनो रूपं निश्चयसम्यग्दर्शनं स्यात् । मान में उदय को प्राप्त हुए पुण्य-पाप के निमिसभूत (अन. ध. स्वो. टी. १-६१)।
हर्ष-विषादाविरूप परिणामों को अपने शव १ प्रात्मा का श्रद्धान करना, यह निश्चय सम्यक्त्व प्रात्मद्रव्य से पृथक करना, इसका नाम निश्चय कहलाता है। ३ स्वकीय प्रात्मा के अनुभवस्वरूप पालोचना है।। जो वीतराग चारित्र का अविनाभावी वीतराग निश्रावचन-एक कंचन निश्राभूतं कृत्वा या सम्यक्त्व है उसे निश्चय सम्यक्त्व कहते हैं। विचित्रोक्तिरसो निश्रावचनम् । (दशवं. नि. हरि. निश्चय सम्यग्ज्ञान-१. तेषामेव (भूतार्थेनाधि- व. ७३)। गतानां पदार्थानामेव) सम्यकपरिच्छित्तिरूपेण किसी एक को पालम्बनभूत करके जो विचित्र वचन शुद्धात्मनो भिन्नत्वेन निश्चयः सम्यग्ज्ञानम् । बोला जाता है उसे निश्रावचन कहते हैं। (समयप्रा. जय.व. १६५)। २. xxx अभव- निश्रित-देखो निःसृत और अनिश्रित । निश्रितो त्सन्देह-मोहभ्रमम् xxx । (अन. ध. १-६१); लिङ्गप्रमितोऽभिधीयते । (त. भा. सिद्ध. व. १, प्रभवन्तोऽद्यिमानाः सन्देह-मोह-भ्रमा यस्य तदात्मनो १६)। रूपं निश्चयसम्यग्ज्ञानम् । (मन. घ. स्वो. टी. लिंग (हेतु) से जो ज्ञान होता है उसे निश्रित
अवग्रह कहते हैं। १ भूतार्थस्वरूप से जाने गये जीवादि पदार्थों को निषद्या-निषद्या समस्फिगनिवेशनं पर्यबन्धासमीचीन बोध के द्वारा शुद्ध प्रात्मा से भिन्न दि। (त. भा. सिद्ध. व. ७-१६, पृ. ६३) । जानना, इसे निश्चय सम्यग्ज्ञान कहते हैं। कटिभाग को सम रखकर पद्मासन प्रादि प्रासनों से निश्चय सुख-xxx केवलज्ञानान्तर्भूतं यदना- बैठने को निषद्या कहते हैं । कुलत्वलक्षणं निश्चयसुखम् xxx 1 (पंचा. का. निषद्यापरिषहविजय-१. श्मशानोद्यान-शून्यायतजय. वृ.५८)।
नगिरिगुहा-गह्वरादिष्वनभ्यस्तपूर्वेषु निवसत प्रादिकेवलज्ञान के अन्तर्गत आकुलता रहित सुख को त्यप्रकाश स्वेन्द्रियज्ञानपरीक्षित प्रदेशे कृतनियमक्रियस्य निश्चय सुख कहते हैं।
निषद्यां नियमितकालामास्थितवत: सिंह-व्याघ्रादिनिश्चय हिंसा-बहिरङ्गान्यजीवस्य मरणेऽमरणे विविध भीषणध्वनिश्रवणान्निवृत्तभयस्य चतुर्विधोपवा निविकारस्वसंवित्तिलक्षण प्रयत्न रहितस्य निश्च- सर्गहनादप्रच्युतमोक्षमार्गस्य वीरासनोत्कुटिकाद्यायशुद्धचैतन्यप्राणव्यपरोपणरूपा निश्चहिंसा भवति। सनादविचलितविग्रहस्य तत्कृतबाघासहनं निषद्यापXxx अयमत्रार्थ:-स्व-स्वभावनारूपनिश्चय- रिषहविजयः । (स.सि. ६-६)। २. संकल्पितासप्राणस्य विनाशकारणभूता रागादिपरिणति निश्चय- नादविचलनं निषद्यातितिक्षा । श्मशानोद्यान शन्याहिंसा भण्यते । (प्रव. सा. जय. वृ. ३-१७)। यतन-गिरि गुहा गह्वरादिषु अनभ्यस्तपूर्वेषु विदित. जीव मरे या न मरे, निविकार स्वसंवेदनरूप संयमक्रियस्य धर्यसहायस्योत्साहवतो निषद्यामधिप्रयत्न के बिना जो निश्चय शुद्ध चैतन्यरूप प्राण रूढस्य प्रादुर्भूतोपसर्ग-रोगविकारस्यापि सतः तत्प्रदे
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