Book Title: Jain Lakshanavali Part 2
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 344
________________ नोप्रागमद्रव्यकाल ] तपोनियमक्रियानुष्ठाता अनुपयुक्त: । ( श्राव. हरि. वृ. पू. ५) । संयम, तप और नियम क्रियानों का श्रनुष्ठाता होकर भी जो वर्तमान में उपयोग से रहित है उसे नो-नागभज्ञशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्य मंगल कहते हैं । नोश्रागमद्रव्यकाल – जीवाजीवादिश्रदुभंगदव्वं वा णोम्रागमदव्वकालो | ( धव. पु. ४, पृ. ३१६) । अथवा जीव अजीव आदि श्राठ भंगस्वरूप ( देखिये धव. पु. ६, पृ. २४६) द्रव्य को नोश्रागमद्रव्यकाल कहते हैं । नो- श्रागमद्रव्यदोष - णोश्रागमदव्वदोसो णाम जं दव्वं जेण उवघा देण उवभोगं ण एदि तस्स दव्वस्स सो उवधादो दोसो णाम । तं जहा । साडियाए श्रग्गिदद्धं वा मूसगभक्खियं वा एवमादि। ( कसायपा. चू. पू. १६) । जो द्रव्य जिस उपघात के निमित्त से उगभोग को प्राप्त नहीं होता है, वह उपघात उस द्रव्य का द्वेष कहलाता है । इसी को तद्व्यतिरिक्त नोश्रागमद्रव्यद्वेष कहते हैं। जैसे- साड़ी का द्वेष श्रग्नि से जलना या चूहे से काटा जाना है । नोश्रागमद्रव्यनन्दी – नोभागमतस्तु ज्ञशरीरभव्यशरीरोभयव्यतिरिक्ता च द्रव्यनन्दी द्वादशप्रकारस्तूर्यसंघात : - भंभा मुकुंद मद्दल कडंब झल्लरि हुडुक्क कंसाला | काहलि तलिमा वंसो संखो पणवो य बारसमो ॥ (श्राव. हरि. वृ. पू. ७) । भेरी, मुकुन्द, मृदंग, कडम्ब, झालर, हुड़क्क, कंपाल, काहल, तलिमा, बंस, शंख श्रौर पणव इन बारह प्रकार के बाजों के समूह को नोघ्रागमज्ञशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यनन्दी कहते हैं । नोग्रागमद्रव्यमङ्गल – देखो नो- प्रागम-ज्ञशरीर द्रव्यमङ्गल । मङ्गलपयत्थजाणयदेहो भव्वस्स वा सजीवोऽवि । नो-श्रागमप्रो दव्वं श्रागमरहिप्रोत्ति जं भणिश्रं ॥ श्रहवा नो देसम्मि नो श्रागमत्रो तदेकसाओ । भूयस्स भाविणो वा ऽऽगमस्स जं कारणं देहो ॥ जाणय- भव्वसरीराइरित्तमिह दव्वमंगलं होई । जा मंगला किरिया तं कुणमाणो प्रणुवउत्तो ॥ जं भूयभावमंगल परिणामं तस्स वा जयं जोग्गं । जं वा सहावसोहणवन्नाइगुणं सुवण्णाई ॥ तं पिव हु भावमंगलकारण मंगलंति निद्दिट्ठ । नो-श्रागमत्रो दव्वं नोसद्दो सव्वपडिसेहे ।। (विशेषा. ४४ - ४८ ) | Jain Education International [नोप्रागमद्रव्यसामायिक मंगल पदार्थ के ज्ञाता का जो निर्जीव शरीर है उसको श्रथवा भविष्य में जो मंगल पदार्थ का ज्ञाता होने वाला है उसके सजीव शरीर को प्रागम रहित होने से नोश्रागमद्रव्यमंगल कहा जाता है । नोश्रागमद्रव्यविमोक्ष - नोद्यागमतस्तु ज्ञशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तो निगडादिकेषु विषयभूतेषु यो विमोक्ष: स द्रव्यविमोक्षः, सुब्व्यत्ययेन वा पञ्चम्यर्थे सप्तमी, निगडादिभ्यो द्रव्येभ्यः सकाशाद्विमोक्षः द्रव्यविमोक्षः । ( श्राचारा. नि. शी. वृ. २५८, पू. २३६)। विषयभूत सांकल प्रादि विषयक जो विमोक्ष है वह नोप्रागमद्रव्यविमोक्ष कहलाता है । अथवा सांकल प्रादिरूप बन्धन से विमुक्त होने को नोश्नागमद्रव्यविमोक्ष कहते हैं । नोश्रागमद्रव्यव्यतिरिक्तकर्मप्रतिक्रमरण-क्षयोपशमावस्थामुपगतः चारित्रमोहः नोश्रागमद्रव्यव्यतिरिक्तकमं प्रतिक्रमणम् । (भ. प्रा. विजयो. ११६) । क्षयोपशम श्रवस्था को प्राप्त चारित्रमोहनीय कर्म को नागमद्रव्यव्यतिरिक्तक मंप्रतिक्रमण कहते हैं । नोश्रागमद्रव्यव्यतिरिक्तकर्मव्रत - उपशमे क्षयोपशमे वावस्थितः चारित्रमोहो नोग्रागमद्रव्यव्यतिरिक्तकर्मव्रतम् । (भ. प्रा. विजयो. १९८५) । उपशम अथवा क्षयोपशम अवस्था में स्थित चारित्रमोहनीय कर्म को नोश्रागमद्रव्यव्य रिक्तकर्मव्रत ६४६, जैन-लक्षणावली कहते हैं । नोश्रागमद्रव्यश्रुत - नोनागमतस्तु श्रुतपदार्थज्ञशरीरं भूत भविष्यत्पर्यायम् । (उत्तरा. नि. शा. वृ. १-१२, पृ. ८) । श्रुतपदार्थ के ज्ञाता के भूत-भविष्यत् पर्यायसम्बन्धी शरीर को नोप्रागमद्रव्यश्रुत कहते हैं । नोप्रागमद्रव्यसामायिक – नोश्रागमद्रव्य सामायिकं नाम यत् त्रिविकल्पं ज्ञायकशरीर भावि तद्व्यतिरिक्तभेदेन । सामायिकज्ञस्य यच्छरीरं तदपि सामाविकज्ञानकारणम् । श्रात्मेव शरीरमन्तरेण तस्याभावात् । यस्य हि भावाभावो नियमतो यदनुकरोति तत्तस्य कारणमिति हेतु- फलव्यवस्था वस्तुषु । ततः प्रत्ययसामायिकस्य कारणत्वाच्छरीरं त्रिकालगोचरं सामायिकशब्दवाच्यं भवति । (भ. प्रा. विजयो. ११६, पृ. २७४) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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