Book Title: Jain Lakshanavali Part 2
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 399
________________ पादपोपगमन] ७०१, जैन-लक्षणावली [पाप कहते हैं । यह प्रणाम प्रादि की महानता का द्योतक पादाभ्यामुपगमनं ढौकनं संघानिर्गत्य योग्यदेशस्या श्रयणम्, तेन प्रवर्तितं मरणं पादोपगमनमरणम्, स्वपादपोपगमन-देखो पादोपगमनमरण। १. निा - परवैयावृत्त्य निरपेक्षः प्राणत्याग उच्यते रूढिवशात् । घातं तु प्रव्रज्या-शिक्षापदादिक्रमेण जराजर्जरितश- यदा पाउग्गगमणमरणं इति पाठस्तदा प्रायोग्यस्य रीरः करोति- यदुपहितचतुर्विधाहारप्रत्याख्यानो भवान्तकरणयोग्यस्य संहननस्य. संस्थानस्य गमनेन निर्जन्तूक स्थण्डिलमाश्रित्य पादप इवैकेन पावेन प्राप्त्या निर्वयं मरणं प्रायोग्यगमनमरणम । प्रायोनिपतत्यपरिस्पन्दस्तावदास्ते प्रशस्तध्यानव्यापृ- गमनमित्यपीदमुच्यते, प्रायस्य सन्यासवदनशनस्योतान्तःकरणो यावदुत्क्रान्तप्राणस्तदेतत् पादपोपगमना- पगमनेन साध्यत्वात् । (भ. प्रा. मूला. २६)। . ख्यमनशनम् । (त. भा. हरि. व सिद्ध. वृ. ६-१९)। १ जिस प्रकार हाथ आदि से छेदा गया वक्ष विच२. तत्रानशनिनः परित्यक्तचतुर्विधाहारस्याधिकृतचे- लित नहीं होता है उसी प्रकार जिस मरण में वक्ष ष्टाव्यतिरेकेण चेष्टान्तरमधिकृत्यकान्तनिष्प्रतिकर्म- के समान शरीर को स्थिर रखा जाता है उसे पादोशरीरस्य पादपस्येवोपगमनं सामीप्येन वर्तनं पादपो- पगमनमरण कहा जाता है। २ पांवों से जाकर पगमन मिति । (दशवै. नि. हरि. वृ. १-४७, पृ. योग्य देश का प्राश्रय लेने पर जो मरण होता है २६) । ३. पादपस्योपगमनम्-अस्पन्दतयाऽवस्थानं उसे पादोपगमनमरण कहते हैं । अथवा पाउग्गगपादपोपगमनम् । (प्रौपपा. अभय. वृ. १८, पृ. ३८)। मनमरणं' ऐसा पाठ होने पर तदनुसार प्रायोग्य का १ जो चार प्रकार के प्राहार का परित्याग करता अर्थ संसार के नष्ट करने योग्य-संहनन और हुआ जन्तुरहित शुद्ध भूमिका प्राश्रय लेकर पादप संस्थान होता है और ममन का अर्थ प्राप्ति होता (वृक्ष) के समान निश्चल रहता है व एक पार्श्व- है, इस प्रकार संसार के विनाशक संहनन और भाग से पड़ जाता है और प्रशस्त ध्यान में मन को संस्थान की प्राप्ति से जो मरण निर्मित होता है लगाता हया तब तक उसी प्रकार से निश्चल रहता उसे प्रायोग्यमरण कहा जाता है। ४ मलाराधनादर्पण है जब तक प्राण नहीं निकल जाते। उसके इस टीका से भी यही अभिप्राय निकलता है। विशेष अनशन को पादपोपगमन अनशन कहा जाता है। वहां इतना है कि उपलब्ध पाठ से पं. प्राशाधरने पादान्तरपंचेन्द्रियागमन-पादान्तरेण पञ्चाक्ष- 'प्रायोगमन' की सूचना करते हए 'प्राय' का अर्थ गमे तन्नामकोऽश्नतः ॥ (अन. ध. ५-५१)। .. संन्यासयुक्त अनशन को ग्रहण किया है, उसके उपदोनों पावों के अन्तराल से पंचेन्द्रिय प्राणी के जाने गमन (प्राप्ति) से सिद्ध होने वाले मरण को प्रायो. पर पादान्तरपंचेन्द्रियागमन नामक भोजन का गमन मरण जानना चाहिए। इसका एक अन्य नाम अन्तराय होता है। उन्होंने प्रायोपवेशन भी निर्दिष्ट किया है। पादपोपगमन अनशन-देखो पादपोपगमन। पाप-१. सम्मत्तेण सुदेण य विरदीए कसायणिग्गहपादोपगमनमरण-देखो पादपोपगमन अनशन । गुणेहिं । जो परिणदो स पुण्णो तब्विवरीदेण पावं १. पायव इव (उवगमणं) पाअोवगमनम्, हत्थाइहिं तु ॥ (मूला. ५-३७) । २. यदशुभमथ तत्पापमिछिन्नो दुमो व न चलति । (उत्तरा. चू. ५, पृ. २६)। ति भवति सर्वज्ञनिर्दिष्टम् ॥ (प्रशमर. २१६ )। २. पादाम्यामुपगमनं ढौकनम्, तेन प्रबर्तितं मरणं ३. पाति रक्षति प्रात्मानं शुभादिति पापम् । (स.. पादोपगमनमरणम् ।xxx अथवा पाउग्गगमण- सिं. ६-३) अस्मात् पुण्यसंज्ञककर्मप्रकृतिसमहामरणं इति पाठः । भवान्तकरणप्रायोग्यं संहननं दन्यत्कर्म पापमित्युच्यते । (स. सि. ८-२६) संस्थानं च इह प्रायोग्यशब्देनोच्यते, अस्य गमनं ४. तत्प्रतिद्वन्दिरूपं पापम् । तस्य पूण्यस्य प्रतिद्वन्दिप्राप्तिः, तेन कारणभूतेन यनिर्वयं मरणं तदुच्यते रूपं पापमिति विज्ञायते । पाति रक्षयात्मानम पाउग्गगमनमरणमिति । (भ. प्रा. विजयो. २६)। अस्माच्छुभपरिणामादिति पापाभिधानम । । ३. पादपो वृक्षः, तस्येव छिन्नपतितस्योपगमनम् ६, ३, ५)। ५. पापं तद्विपरीतं तु xx अत्यन्तनिश्चेष्टतयाऽवस्थानं यस्मिन् तत् पादपोप- X। ( षड्दस. ५०)। ६. अशभपरिणामो गमनम् । (स्थाना. अभय. वृ. २, ४, १०२) । ४. जीवस्य, तन्निमित्तः कर्मपरिणामः पुदगलानां च Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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