Book Title: Jain Lakshanavali Part 2
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 328
________________ निश्चय प्रत्याख्यान ] भावनाबलेन दृष्टश्रुतानुभूत भोगाकांक्षास्मरणरूपाणामतीत रागादिदोषाणां निराकरणं निश्चयप्रति क्रमणं भवति । (परमा वृ. २-६४ ) । शुद्ध, निर्विकल्प परमात्मतत्व की भावना के बल से दृष्ट, भुत व अनुभूत भोगों की स्मृतिस्वरूप प्रतीत रागादि दोषों के निराकरण करने को निश्चय प्रतिक्रमण कहते हैं । निश्चय प्रत्याख्यान - १. पुनर्भाविकाले संभाविनां निखिलमोह राग-द्वेषादिविविधविभावानां परिहारः परमार्थ प्रत्याख्यानम् । श्रथवानागतकालोद्भव: विविधान्तर्ज्जल्पपरित्यागः शुद्धं निश्चयप्रत्याख्यानम् । (नि. सा. वृ. १०५ ) । २. वीतरागचिदानन्दे कानुभूतिभावनाबलेन भाविभोगाकांक्षारूपाणां रागादीनां त्यजनं निश्चयप्रत्याख्यानं भाव्यते । (परमा वृ. २-६४ ) । २ वीतराग चिदानन्दरूप प्रात्मानुभूति की भावना के बल से श्रागामी काल में भोगों की श्राकांक्षारूप रागादि के त्याग को निश्चय प्रत्याख्यान कहते हैं । निश्चय मोक्षमार्ग - १. निजनिरंजन शुद्धात्मतत्त्वसम्यक्श्रद्धान-ज्ञानानुचरणैकाग्रयपरिणतिरूपो निश्चयमोक्षमार्ग: । (बृ. द्रव्यसं. टी. ३६) । २. निजशुद्धात्मसम्यक् श्रद्धान-ज्ञानानुष्ठानरूपो निश्चयमोक्षमार्गः । (परमा. वृ. २- १४ ) । १ अपने नित्य, निरंजन, शुद्ध प्रात्मतत्व के सम्यक् श्रद्धान, ज्ञान और प्राचरणरूप एकाग्र परिणति को निश्चय मोक्षमार्ग कहते हैं । निश्चय लोक - आदिमध्यान्तमुक्ते शुद्धबुद्धक स्व. भावे परमात्मनि सकल विमल केवलज्ञान लोचनेनादर्श बिम्बानीव शुद्धात्मादिपदार्था लोक्यन्ते दृश्यन्ते ज्ञायन्ते परिच्छिद्यन्ते यतस्तेन कारणेन स एव निश्चयलोकस्तस्मिन्निश्चयलोकाख्ये स्वकीय शुद्धपरमात्मनि अवलोकनं वा स निश्चयलोकः । ( ब. द्रव्य.टी. ३५, पू. १२५ ) । आदि, मध्य और अन्त से रहित शुद्ध बुद्धकस्वभावरूप परमात्मा के निर्मल केवलज्ञानरूप दर्पण में प्रतिबिम्बों के समान शुद्ध आत्मादि सर्व पदार्थ आलोकित होते हैं, इसलिए शुद्ध परमात्मा को ही -निश्चय लोक कहते हैं । निश्चय वात्सल्य - निश्चयवात्सल्यं पुनस्तस्यैव व्यवहारवात्सल्यगुणस्य सहकारित्वेन धर्मे दृढत्वे Jain Education International ६३०, जन-लक्षणावली [ निश्चय सम्यक्त्व जाते सति मिथ्यात्व - रागादिसमस्त शुभाशुभ बहिर्भावेषु प्रीति त्यक्त्वा रागादिविकल्पोपाधिरहितपरमस्वास्थ्यसंवित्ति संजातसदानन्दै कलक्षणसुखामृतरसास्वादं प्रति प्रीतिकरणमेवेति । (बृ. द्रव्यसं. टी. ४१, पू. १५४) । व्यवहार वात्सल्य गुण की सहकारिता से धर्म में दृढ़ता के हो जाने पर मिथ्यात्व व रागादि रूप समस्त शुभाशुभ बाह्य भावोंसे प्रीति छोड़कर रागादि विकल्परूप उपाधि से रहित उत्कृष्ट स्वास्थ्य के संवेदन से उत्पन्न हुए शाश्वतिक परमानन्दरूप सुखामृत के रसास्वादन में प्रीति करने को निश्चय वात्सल्य कहते हैं । निश्चय वीर्याचार - निश्चयचतुर्विद्याचारस्य रक्षणार्थ स्वशक्त्यनवगूहनं निश्चयवीर्याचारः । (बु. द्रव्यसं. टी. ५२, पृ. १६२ ) । निश्चय दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्राचार और तपाचार की रक्षा के लिए अपनी शक्ति के नहीं छिपाने को निश्चय वीर्याचार कहते हैं । निश्चय श्रुतकेवली - १. XXX ततो गत्यन्तराभावात् ज्ञानमात्मेत्यायात्यतः श्रुतज्ञानमप्यात्मैव स्यात् । एवं सति य श्रात्मानं जानाति स श्रुतकेंवलत्यायाति स तु परमार्थ एव । ( समयप्रा. श्रमृत. वृ. १० ) । २. यो भावश्रुतरूपेण स्वसंवेदनज्ञानेन शुद्धात्मानं जानाति स निश्चयश्रुतकेवली । ( समयप्रा. जय. वृ. १० ) । १ जो ज्ञानस्वरूप श्रात्मा को जानता है वह श्रुतकेवली कहलाता है । २ जो भावश्रुतरूप स्वसंवेदनज्ञान के द्वारा शुद्ध श्रात्मा को जानता है उसे निश्चय श्रुतकेवली कहते हैं । द्रव्य निश्चय सम्यक्त्व - १. x x x णिच्छयदो अप्पाणं (सद्दहणं) हवइ सम्मत्तं ॥ ( दर्शनप्रा. २०)। २. केवलज्ञानादिगुणास्पदनिजशुद्धात्मैवोपादेय इति रुचिरूपं निश्चयसम्यक्त्वम् । सं. टी. १४) ; तथैव तेनैव व्यवहारसम्यक्त्वेन पारस्पर्येण साध्यं शुद्धोपयोगलक्षण निश्चय रत्नत्रयभावनोलन्नपरमाह्लादैकरूप सुखामृतरसास्वादनमेवोपादेयमिन्द्रियसुखादिकं च हेयमिति रुचिरूपं वीतरागचारित्राविनाभूतं वीतरागसम्यक्त्वाभिधानं निश्चयसम्यक्त्वं च ज्ञातव्यम् । (बृ. द्रव्यसं. टी. ४१, पू. १५६ ) । ३. वीतरागसम्यक्त्वं निजशुद्धात्मानुभूति For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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