Book Title: Jain Lakshanavali Part 2
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 440
________________ जैन-लक्षणावली संख्या संकेत ग्रन्थ नाम ग्रन्थकार प्रकाशक प्रकाशन काल प्रमाणसं. प्रमाणसंग्रह अकलंकदेव सिंधी ग्रंथमाला, कलकत्ता | ई. १६३६ २३४ | प्रमाल. प्रमालक्षण मनसुखभाई, भगुभाई, अहमदाबाद प्र. क. मा. प्रमेयकमलमार्तण्ड प्रभाचन्द्राचार्य निर्णय सागर प्रेस, बम्बई ई. १९४१ | प्र. र. मा. प्रमेयरत्नमाला अनन्तवीर्य प्राचार्य बालचन्द्र शास्त्री, बनारस ई. १९२८ २३७. प्रव. सा. प्रवचनसार कुन्दकुन्दाचार्य परमश्रुत प्रभावक मण्डल, वि. सं. १९६६ बम्बई २३८ प्रवचनसार वृत्ति अमृतचन्द्राचार्य प्रसृत. वृ. २३६ प्रव. सा. जयसेनाचार्य जय. व. २४० | प्रव. सारो. प्रवचनसारोद्धार नेमिचन्द्र सूरि जीवनचन्द साकरचन्द | ई. १९२६ जव्हेरी, बंबई | प्र. सारो. व. प्रवचनमारोद्धार वृत्ति सिद्धसेनसूरि २४२ | प्रशमर. | प्रशमरतिप्रकरण उमास्वाति आचार्य परमश्रुत प्रभावक मण्डल, | ई. १९५० बम्बई २४३ | प्रश्नल्या. | प्रश्नव्याकरणांग २४४ | प्रश्नो. मा. | प्रश्नोत्तररत्नमालिका | राजर्षि अमोधवर्ष | जैन ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, | ई. १६०५ बम्बई २४५ | प्रायश्चित्तचू. प्रायश्चित्तचूलिका गुरुदास मा. दि. जैन ग्रन्थमाला, वि. सं. १९७८ बम्बई २४६ | प्रायश्चित्त | बन्धस्वा. | बन्धस्वामित्व (तृतीय जैन आत्मानन्द सभा, वि. सं. १९७२ कर्मग्रन्थ) भावनगर २४८ | बन्धास्वा. वृ. बन्धस्वामित्व वृत्ति हरिभद्र सूरि बन्धस्वा. | बन्धस्वामित्व (तृतीय देवेन्द्रसूरि ई. १९३४ __ कर्मग्रन्थ) बुद्धिसा. | बुद्धिसागर संग्रामसिंह ऋषभदेव केशरीमल श्वे. | ई. १६३६ संस्था, रतलाम बृहत्त. | बृहत्कल्पसूत्र, नियुक्ति व | प्रा. भद्रबाहु जैन आत्मानन्द सभा, ई. १९३३-४२ भाष्यसहित (छह भाग) ... भावनगर २५२ | वृहत्क. वृ. | बृहत्कल्पसूत्रवृत्ति मलयगिरि-क्षेमकीति अनन्तकीर्ति २५३ | बृहत्स. | बृहत्सर्वज्ञ सिद्धि मा. दि. जैन ग्रंथमाला समिति ई. १९७२ बम्बई २५४ बृ. द्रव्यसं. | बृहद्व्य संग्रह | नेमिचन्द्रसैद्धान्तिकदेव | परमश्रुत प्रभावक मण्डल, वी. नि. २४३३ / २४६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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