Book Title: Jain Lakshanavali Part 2
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 352
________________ न्याय्य] ६५४, जैन-लक्षणावलो [न्यासापहार शास्त्र-क्षीरसमुद्रस्य श्रीमदित्यादिनियमेन कथंचि- संप्रगृह्णतः । न्यासापहार एतावदित्यनुज्ञापकं वचः ।। त्सावधारणत्वेन प्रमेयस्वरूपमियते गम्यते येन स (ह. पु. ५५-१६८)। ६. हिरण्यादिनिक्षेपे अल्पन्यायः नय-प्रमाणयुक्तिः, तत्प्रतिपादकत्वादिति युक्ति- संख्यानुज्ञावचनं न्यासापहारः ॥ (त. श्लो. ७-२६)। शास्त्रमपि न्यायः। (प्रमेयर. टिप्पण २, पृ.३)। ७. गोपनाय स्वद्रव्यार्पणमन्यस्य न्यासः, तस्यापहारः १ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के अपनी वृत्ति अपलाप: सुश्लिष्टवचनेन । (त. भा. सिद्ध. व. (माजीविका) के अनुष्ठान को न्याय कहते हैं। ७-२१)। ८. हिरण्यादेव्यस्य निक्षेप्तुविस्मृतसंख्य२ ज्ञेय का अनुसरण करने वाला अथवा न्यायरूप स्याल्पसंख्यानमाददानस्य एवमित्यनुज्ञावचनं न्यासाहोने से सिद्धान्त को न्याय कहा जाता है। पहारः। (चा. सा. पृ. ५)। ६. न्यासः परगृहे ३ प्रमाण से प्रमेय को संगतिरूप युक्ति को न्याय रूपकादेनिक्षेपः, तस्य अपहारः अपलापः । (प. बि. कहते हैं। मु. ७.३-२४) । १०. न्यासापहारिता द्रव्यनिक्षेन्याय्य-न्यायादनपेतं न्याय्यं श्रुतज्ञ प्तुविस्मतसंख्यस्याल्पसंख्यं द्रव्यमाददानस्य एवमेवेपु. १३, पृ. २८६)। त्यभ्युपगमवचनम् । (रत्नक. टी. ३-१०) । श्रुत चूंकि न्याय से युक्त है, अत: उसे न्याय्य कहा ११. न्यस्तशिविस्मत्रनुज्ञा-न्यस्तस्य निक्षिप्तस्य कहा जाता है। हिरण्यादिद्रव्यस्य अंशमेकमंशं विस्मर्तुविस्मरणशीन्यास-देखो निक्षेप । xxx उपायो न्यास लस्य निक्षेप्तुरनुज्ञा । द्रव्यमनुनिक्षेप्तुविस्मृततत्संइष्यते । (प्रमाणसं. ८६ लघीय ५२; धव. पु. १, ख्यस्याल्पसंख्यं तद् गृहृत एवमित्यनुमतिवचनम् । सोऽयं न्यासापहाराख्योऽतिचारः । (सा. घ. स्बो. पृ. १७ व पु. ३, पृ. १८ उद्.) । जीवादि पदार्थों के जानने के उपाय को न्यास या टी. ४-४५)। १२. केनचित्पुरुषेण निजमन्दिरे हिरण्यादिद्रव्यं न्यासीकृतम, निक्षिप्तमित्यर्थः । निक्षेप कहते हैं। तस्य द्रव्यस्य ग्रहणकाले संख्या विस्मता, न्यासापलाप-देखो न्यासापहरण । विस्मरणप्रत्ययादल्पं द्रव्यं गृह्णाति, न्यासवान् पुमान् न्यासापहरण-देखो न्यासापहार । न्यस्यते अनज्ञावचनं ददाति-देवदत्त, यावन्मात्रं द्रव्यं ते रक्षणायान्यस्मै समर्प्यत इति न्यासः सुवर्णादिः, वर्तते तावन्मानं त्वं गृहाण, किमत्र पृष्टव्यमिति तस्यापहरणमपलापः। (योगशा. स्वो. विव. ३, जाजत पस जानन्नपि परिपूर्ण तस्य न ददाति न्यासापहार ५४; सा. घ. स्वो. टी. ४-३६)। उच्यते । (त. वृत्ति श्रुत. ७-२६; कातिके. टी. जो सुवर्णादि द्रव्य सुरक्षा के निमित्त दूसरे के लिए ३३३-३४) । समर्पित किया जाता है उसे न्यास कहा जाता है। जिसने दूसरे के पास रक्षा के निमित्त सुवर्णादि इस न्यास के अपहरण का नाम न्यासापहरण या द्रव्य को रख दिया है वह यदि पीछे भूल से कम न्यासापलाप है। प्रमाण में उसे वापिस मांगता है तो 'हां इतना ही न्यासापहार-देखो न्यासापहरण । १. हिरण्यादे- है' इस प्रकार कहकर रखे हुए द्रव्य से कम देना, द्रव्यस्य निक्षेप्तूविस्मृतसंख्यस्याल्पसंख्येयमाददानस्यै. यह न्यासापहार नामक सत्याणुव्रत का एक प्रतिवमित्यनुज्ञावचनं न्यासापहारः । (स. सि. ७-२६)। चार है। २ विस्मरणकृत-दूसरे के विस्मत २. न्यासापहारो विस्मरणकृतपरनिक्षेपग्रहणम् । -निक्षेप (धरोहर) का ग्रहण करना, इसका नाम (त. भा.७-२१) । ३. हिरण्यादिनिक्षेपेऽल्पसंख्या- न्यासापहार है। अभिप्राय यह है कि किसी ने नुजावचनं न्यासापहारः। हिरण्यादेव्यस्य निक्षेप्तु- दूसरे के यहां पांच सौ रखे, पर ठीक स्मरण न विस्मृतसंख्यस्याल्पशः संख्यानमाददानस्यैवमित्यनु- रहने से वापिस लेते समय वह पूछता है कि मैंने ज्ञावचनं न्यासापहार इत्याख्यायते । (त. वा. ७, पांच सौ रखे थे कि चार सौ, जितना रखा हो दे २६, ४)। ४. न्यस्यते निक्षिप्यत इति न्यासो रूप- दीजिए । इस पर 'चार सौ ही रखे थे ऐसा कहते काद्यर्पणम, तस्यापहरणं न्यासापहारः। (श्रा. प्र. हुए चार सौ देकर भले हुए शेष एक सो को स्वयं टी. २६०)। ५. विस्मृतन्यस्तसंख्यस्य स्वल्पं स्वं रख लेना, इसे न्यासापहार जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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